अल्लाह की मुहब्बत बन्दो पर।Allah ki muhabbat bando par.

allah ki muhabbat bando par

हदीसे-कुदसी में अल्लाह तआला का इरशाद हैः मैं एक छुपा हुआ ख़ज़ाना था। मैंने पसन्द किया कि मैं पहचाना जाऊँ। पस मैंने मख्लूक को पैदा कर दिया।

मख़्लूक़ के पैदा होने का बुनियादी सबब यह रहा कि अल्लाह रब्बुल्-इज़्ज़त को यह बात पसन्द आयी कि लोग मेरी मारिफ़त (पहचान) हासिल करें। मेरी बड़ाईयों से वाकिफ हों। चूँकि मख़्लूक की पैदाईश का सबब मुहब्बत बनी इसलिए हमारे बड़े मुहब्बत को पहला दर्जा देते हैं।

यह मुहब्बत अल्लाह रब्बुल्-इज़्ज़त ने अपनी सारी मख़्लूक में तकसीम फ़रमाई। हर मख़्तूक ने अपनी-अपनी ताकत और सलाहियत के मुताबिक उसमें से हिस्सा पाया। यह मुहब्बत जानदार चीज़ों को भी मिली और जो गैर-जानदार हैं उनको भी मिली।Allah ki muhabbat bando par.

पूरी दुनिया में मुहब्बत का राज है। आपने देखा होगा कि लोहा मकनातीस की तरफ बेइख़्तियार खिंचता है। यह चीज़ों में मुहब्बत की दलील है। जो भी चीज़ ऊपर से फेंकें वह ज़मीन पर गिरती है। यह जमादात यानी बेजान चीज़ों में मुहब्बत की दलील है।

परिन्दों ने हिस्सा पाया, जानवरों ने हिस्सा पाया, इनसानों ने हिस्सा पाया, मिल-जुलकर रहना था। अगर दिलों में कोई ताल्लुक ही न होता, लोग एक दूसरे से अजनबी होते, एक की तकलीफ का दूसरा एहसास ही न करता, कोई किसी के साथ हमदर्दी न करता तो यह ज़िन्दगी इनसान के लिए गुज़ारनी मुश्किल हो जाती।

इस मुहब्बत के नमूने आपको घर-घर में देखने को मिलते हैं। हर बेटी को बाप से मुहब्बत होती है। बाप बीमार है, बेटी सारी रात पास कुर्सी पर बैठी जाग रही है, कि मेरे अब्बू आँख खोलेंगे तो मैं उन्हें दवाई पेश करूँगी।

खाने को कुछ माँगेंगे तो मैं खाना हाज़िर करूँगी। वह अपने आपको अपने बाप की बाँदी ख़ादिमा, सेविका समझती है। और इस रात भर की तकलीफ उठाने को वह अपना फर्ज़ और ज़िम्मेदारी समझती है।

Allah ki muhabbat bando par.

बल्कि बहुत सी बार तो उसके दिल से दुआयें निकलती हैं कि मैं बीमार हो जाती, अल्लाह तआला मेरे अब्बू को शिफा अता कर देते। यह उस मुहब्बत की वजह से है जो अल्लाह ने बेटी के दिल में बाप के लिये डाल दी है।

वालिद की मुहब्बत जिस तरह बेटी के दिल में है उसी तरह बेटी की मुहब्बत अल्लाह तआला ने वालिद के दिल में डाली। इसका मन्ज़र आप उस वक़्त देखा करें जब किसी जवान बच्ची को घर से रुख़्सत किया जा रहा होता है।

उसका बाप अपनी कमाई का अधिकतर हिस्सा उसके दहेज पर ख़र्च कर देता है। और जब यह रुख़्सत हो रही होती है तो बाप की आँखों से आँसू जारी होते हैं। देखने से तो उसका बोझ कम हो रहा है, उसके सर से एक फरीज़ा अदा हो रहा है,

लेकिन वह समझता है कि यह मेरे जिगर का टुक्ड़ा है। मैंने इतनी मुहब्बतों से पाला। मालूम नहीं आगे इसकी ज़िन्दगी कैसी होगी। हमने बेटी और बाप को ऐसे लिपट कर रोते देखा कि शायद लोग किसी की मौत पर भी इतना न रोते हों।

तो जुदाई के वक़्त बाप और बेटी का रोना इस मुहब्बत की दलील है।

Allah ki muhabbat bando par.

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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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