बच्चा गलती करे, आपको तकलीफ पहुँचाए। जितना मर्जी सताये, किसी हाल में भी बच्चे को बद्दुआ न दें।
शैतान धोखा देता है, माँ के दिल में यह बात डालता है कि मैं दिल से बद्दुआ नहीं दे रही, बस ऊपर-ऊपर से कह रही हूँ। और इस धोखे में कई बार माँयें आ जाती हैं और ज़बान से बुरे अलफाज़ कह जाती हैं।
याद रखना यह औलाद अल्लाह की नेमत है। इसको बद्दुआयें देना नेमत की नाकद्री है। अल्लाह कितना करीम है हम जैसे नाकद्रों को भी नेमतें अता फरमा देता है।Aulaad ki Tarbiyat Kaise kare?
उसकी कद्र कीजिये और उसको दुआयें दीजिये बल्कि ये तंग करें तो इसके बदले में आप दुआएँ दें। यह नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत है-
जो आसी को कमली में अपनी छुपा ले
जो दूशमन को भी ज़ख़्म खाकर दुआ दे
उसको और क्या नाम देगा ज़माना
वह रहमत नहीं है तो फिर और क्या है।
तो रहमत का तकाज़ा यही है, मुहब्बत का तकाज़ा यही है कि बच्चे चाहे जितनी भी तकलीफ पहुँचाएँ तो माँ आख़िरकार माँ होती है। किसी हाल में भी अपनी ज़बान से बद्दुआ न दे। बल्कि बच्चों के लिये खूब दुआएँ किया करे। रात की तन्हाईयों में अपनी नमाज़ों में अल्लाह से लौ लगाकर बैठा करे।
हज़रत मरियम अलैहस्सलाम के लिये उनकी माँ ने कितनी दुआएँ कीं। और फिर ये दुआयें करती रहें। यही नहीं कि बच्चे की पैदाईश हो गई तो दुआएँ बन्द कर दीं। कुरआन मजीद में है कि यह उसके बाद भी वे दुआएँ करती रही:
ऐ अल्लाह ! मैंने अपनी इस बेटी को और इसकी आने वाली नसल को शैतान मर्दूद के ख़िलाफ़ आपकी पनाह में दिया । तो गोया बच्ची छोटी है मगर माँ की मुहब्बत देखिये ।Aulaad ki Tarbiyat Kaise kare?
सिर्फ इस बच्ची के लिये ही दुआएँ नहीं माँग रही बल्कि उसकी आने वाली नसलों के लिये भी दुआयें माँग रही हैं। अल्लाह रब्बुल्- इज्जत को माँ की यह बात इतनी पसन्द आई कि फ़रमायाः
अल्लाह रब्बुल्-इज़्ज़त ने फिर उस बच्ची को क़बूल फरमा लिया और फिर उसकी तरबियत परवरिश तहजीब और इल्म ऐसी अच्छी फ़रमाई कि बहुत ही अच्छी।
तो यह माँ की दुआ थी और पालने वाला और तरबियत करने वाला तो हकीकत में अल्लाह रब्बुल् – इज़्ज़त है । वह बन्दे की तरबियत फरमाते हैं। तो माँ की दुआओं को कबूलियत हासिल है।इसलिये दुआ कीजिये ताकि बच्चे पर अल्लाह रब्बुल् – इज़्ज़त की ख़ास नज़र हो जाये।Aulaad ki Tarbiyat Kaise kare?
एक अनमोल वजीफा है।
जब बच्चे सो रहे हों तो उन पर हिफाज़त का ‘हिसार’ (घेरा और दायरा ) जरूर बना लिया करें। हमारे बुजुर्गों ने एक हिफाज़त का हिसार बताया और उसकी इतनी बरकतें हैं, उन्होंने फ़रमाया कि मौत के सिवा कोई मुसीबत नहीं आ सकती।
मेरे पीर-व-मुर्शिद ने जब इस आजिज़ को इस हिसार की इजाज़त दी तो फरमाने लगे कि हमने इस हिसार को कई बार मरने वालों को जो कब्र में पहुँच चुके थे, उनके गिर्द भी बाँधा, तो कश्फ की नज़र से देखा कि अल्लाह ने उनको उस रात के कब्र के अज़ाब को माफ फरमा दिया।
तो यह बुजुर्गों की तरफ से बहुत ही कीमती अमल है और इस आजिज़ को इसकी इजाज़त है और आज यह आजिज़ सब सुनने वाले मर्द और औरतों को इजाज़त दे रहा है ताकि ये अल्लाह रब्बुल् इज्जत की हिफाज़त में आ जायें।Aulaad ki Tarbiyat Kaise kare?
वह हिसार ( दायरा और घेरा) क्या है? वह यह है कि पहले दुरुद शरीफ पढ़ लिया करें, फिर अल्हम्दु शरीफ पूरी पढ़ लिया करें। फिर आयतुल कुर्सी पढ़ें और चारों कुल पढ़ें, आखिर में दुरूद शरीफ पढ़ लें।
यानी अव्वल व आखिर में दुरूद शरीफ पढ़ना और दरमियान में सूरः फातिहा आयतुल कुर्सी और चारों कुल पढ़ना और यह सब कुछ पढ़कर अपने गिर्द, बच्चों के गिर्द, घर के गिर्द,
जहाँ बिज़नेस, दुकान दफ्तर वगैरह हो उन सबका तसव्वुर करके उनके गिर्द अपने तसव्वुर में एक दायरा बना दें जिस-जिस चीज़ के गिर्द आप दायरा बना देंगी, वे सब चीजें अल्लाह रब्बुल्- इज्जत की हिफाजत में आ जायेंगी।
अल्लाह के कलाम की हमने बड़ी बरकतें देखीं और सैकड़ों वाकिआत हैं अल्लाह रब्बुल – इज्जत की हिफाज़त के, जिनको बताने का अब मुनासिब वक्त नहीं है।
इसलिये इतना कह देना काफी है कि यह हिसार जिस दिन में और जिस रात में आप बच्चों के गिर्द बनायेंगी। आपके बच्चे फ़ितनों से, आफ्तों से, मुसीबतों से महफूज़ रहेंगे।
और जिस दिन कोई मुसीबत आनी होगी आप देखना कि आप इस अमल को भूल बैठेगीं। तब कोई मुसीबत आयेगी, वरना तो अल्लाह रब्बुल्-इज्जत की हिफाज़त में रहेंगे।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…