हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम
हजरत शमूईल के हालात में हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम का ज़िक्र हज़रत तालूत और जालूत की लड़ाई के सिलसिले में आ चुका है। यही नवजवान आगे चलकर अल्लाह के बरगजीदा और पैग़म्बर बने और बनी इसराईल की रुश्द व हिदायत के लिए रसूल और उनके इज्तिमाई नज़्म व ज़ब्त के लिए ख़लीफ़ा मुक़र्रर हुए। तालूत की मौजूदगी में ही या उनकी मौत के बाद हुकूमत की बागडोर हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम के हाथ में आ गई।
हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम और खलीफा का लक़ब
बनी इसराईल में हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम पहले शख़्स हैं जो अल्लाह के पैग़म्बर और रसूल भी थे और ताज व तख़्त के मालिक भी, चुनांचे कुरआन मजीद ने हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के इस शरफ़ व इम्तियाज़ का इस तरह ज़िक्र किया है-
1. तर्जुमा- ‘अल्लाह ने उनको हुकूमत भी अता की और हिक्मत (नुबूवत) भी और अपनी मर्जी से जो चाहा, सिखाया।’ (अल-बक़रः 251).
2. तर्जुमा-‘ऐ दाऊद ! बेशक हमने तुमको ज़मीन में अपना नायब बनाया।’ (स्वाद : 26)
3. तर्जुमा – ‘और हमने हर एक (दाऊद व सुलैमान) को हुकूमत बख़्शी और इल्म अता किया।'(अल-अंबिया : 79)
नबियों और रसूलों में से हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के अलावा सिर्फ़ हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ही वह पैग़म्बर हैं जिनको कुरआन मजीद ने ख़लीफ़ा के लक़ब से पुकारा है। यह लक़ब हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के अल्लाह के इल्म और कुदरत वाली सिफ़तों का पूरा मज़्हर होना साबित करता है। ज़ाहिर है कि इसके लिए सच्ची शरीअत की इस्तिलाह में ख़लीफ़ा से बेहतर और कोई लफ़्ज़ नहीं हो सकता था। खुलासा यह कि हज़रत दाऊद ने बनी इसराईल की रुश्द व हिदायत की ख़िदमत भी अंजाम दी और उनकी इज्तिमाई जिंदगी की निगरानी भी की।
उनकी खुसूसियतें ये थीं
1. वह तकरीर व खिताबत के फ़न में कमाल रखते थे और इस तरह बोलते थे कि लफ़्ज़-लफ़्ज़ और जुम्ला-जुम्ला एक-एक करके समझ में आ जाता था, और इससे बात वाजेह और कलाम जोरदार हो जाता था।
2. उनका हुक्म और फ़ैसला हक़ व बातिल के दर्मियान क़ौले फ़ैसल की हैसियत रखता था।
ज़बूर
कुरआन में आता है-
1. तर्जुमा- ‘और हमने दाऊद को जबूर अता की। (अन-निसा : 163)
2. तर्जुमा- ‘और बेशक कुछ नबियों को कुछ पर फ़जीलत दी है और हमने दाऊद को जबूर बख़्शी।'(इसरा : 55)
अल्लाह तआला ने हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम पर जबूर नाजिल फ़रमाई जो ऐसे क़सीदों और सजे-सजाए कलिमों का मज्मूआ था, जिसमें अल्लाह की हम्द व सना और इंसान के आजिज बन्दा होने का एतराफ़ और नसीहतों और हिक्मतों के मज़्मून थे, लेकिन बनी इसराईल ने जान-बूझकर जबूर को भी तौरात और इंजील की तरह बदल डाला, जैसा कि कुरआन मजीद में जिक्र किया गया है-
तर्जुमा-‘कुछ यहूदी वे हैं जो (तौरात, जबूर व इंजील) के कलिमों को उनकी असली हक़ीक़त से बदलते और फेरते हैं।’
(अन-निसा : 46)
हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की खुसूसियतें
यों तो अल्लाह तआला ने सभी पैग़म्बरों को खुसूसी शरफ़ व इम्तियाज से नवाज़ा है और अपने नबियों और रसूलों को बेशुमार इनाम व इक्राम बख़्शे हैं, फिर भी शरफ़ व खुसूसियत के दर्जों के एतबार से उनके दर्मियान भी दर्जों का फ़र्क़ रखा है और यही इम्तियाजी दर्जे और मर्तबे उनको एक दूसरे से मुम्ताज करते हैं
तर्जुमा- ‘ये रसूल ! हमने इनके बाज़ (कुछ) को बाज़ पर फ़जीलत दी है।'(अल-बक्करः 253)
चुनांचे हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम के बारे में भी कुरआन ने कुछ खुसूसियतों और इम्तियाज़ों का जिक्र किया है और वे यह हैं-
पहाड़ों और चिड़ियों पर क़ब्ज़ा और उनकी तस्बीह
हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम अल्लाह तआला की तस्बीह व तक़्दीस में बहुत ज़्यादा लगे रहते थे और इतनी अच्छी आवाज वाले थे कि जब जबूर पढ़ते या अल्लाह की तस्बीह व तह्लील में लगे होते तो उनके घुमा देने वाले नामों से न सिर्फ़ इंसान बल्कि चरिंद व परिंद वज्द में आ जाते और आपके आस-पास जमा होकर अल्लाह की हम्द के तराने गाते और सुरीली और वज्द में ला देने वाली आवाज़ों से तक़्दीस व तस्बीह में हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम का साथ देते और सिर्फ यही नहीं, बल्कि पहाड़ भी अल्लाह की हम्द में गूंज उठते, चुनांचे दाऊद अलैहिस्सलाम की इस फ़ज़ीलत का कुरआन ने सूरः अंबिया, सबा और साद में खोलकर जिक्र किया है-
तर्जुमा – ‘और हमने पहाड़ों और परिंदों को ताबे (आधीन) कर दिया है कि वे दाऊद के साथ तस्बीह करते हैं और हम ही में ऐसा करने की कुदरत है।'(अंबिया : 79)
तर्जुमा- ‘और बेशक हमने दाऊद को अपनी ओर से फ़ज़ीलत बख़्शी है (वह यह कि हमने हुक्म दिया) ऐ पहाड़ो और परिंदो ! तुम दाऊद के साथ मिलकर तस्बीह और पाकी बयान करो।’
तर्जुमा- ‘बेशक हमने दाऊद के लिए पहाड़ों को सधा दिया कि उसके साथ सुबह और शाम तस्बीह करते हैं और परिंदों के परे के परे जमा होते और सब मिलकर खुदा की हम्द करते हैं।’
(साद : 18-19)
कुछ तफ्सीर लिखने वालों ने इन आयतों की तफ़्सीर में कहा है कि चरिंद और परिंद और पहाड़ों की तस्बीह जुबाने हाल से थी, गोया कायनात की हर चीज का वजूद और उसकी तर्कीब बल्कि उसकी हक़ीक़त जर्रा-जर्रा पैदा करने वाले अल्लाह की गवाही देती है और यही उसकी तस्बीह व तहमीद है।
इस ख़्याल के ख़िलाफ़ तहक़ीक़ करने वालों की राय यह है कि जानवर, पेड़-पौधे और दरिया पहाड़ वगैरह हक़ीक़त में तस्बीह करते हैं इसलिए कुरआन मजीद ने खोलकर इसका एलान किया है-
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‘सातों आसमान और जमीन और जो इनमें हैं, उसी की तस्बीह करते हैं और (मख़्लूक़ में से) कोई चीज नहीं है, मगर उसकी तारीफ़ के साथ तस्बीह करती है, लेकिन तुम उनकी तस्बीह नहीं समझते। बेशक वह बुर्दबार और माफ़ करने वाला है।’
(बनी इसराईल : 44)
इस जगह दो बातें साफ़-साफ़ नज़र आती हैं एक यह कि कायनात की हर चीज़ तस्बीह करती है, दूसरे यह कि जिन्न व इंसान उनकी तस्बीह समझने की समझ नहीं रखते, इसलिए इन चीज़ों में तस्बीह का हक़ीक़ी वजूद मौजूद हो और फिर दूसरे जुम्ले का इतलाक़ किया जाए कि जिन्न व इंसान तस्बीह की समझ से मजबूर हैं, तो किसी क़िस्म का शक नहीं रहता।
ग़रज़ कुरआन मजीद का यह इरशाद है कि कायनात की हर चीज़ अल्लाह की हम्द व सना करती है, अपने हक़ीक़ी मानी के एतबार से है अलबत्ता उनकी यह तस्बीह व तह्मीद इंसानों की आम समझ से ऊपर रखी गयी है। लेकिन अल्लाह की मर्जी और मशीयत के मातहत कभी-कभी नबियों और रसूलों को इसकी समझ दे दी जाती है जो उनके लिए निशान (मोजजे) के तौर पर होता है और यह मोजज़ा हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की ख़ास बातों में से एक ख़ास बात थी।
हज़रत दाऊद के हाथ में लोहे का नर्म होना
कुरआन ने इस वाक़िए को इस तरह बयान किया है-
तर्जुमा- ‘और हमने उस (दाऊद) के लिए लोहा नर्म कर दिया कि बना जिरहें बड़ी और अन्दाजे से जोड़ कड़ियां।'”(सबा : 101-11)
तर्जुमा-और हमने उस (दाऊद) को सिखाया एक क़िस्म का लिबास ताकि तुमको लड़ाई के मौके पर उससे बचाव हासिल हो। (अंबिया : 80)
हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम पहले आदमी हैं जिनको अल्लाह ने यह फ़ज़ीलत बख़्शी कि उन्होंने वह्य की तालीम के जरिए ऐसी ज़िरहें ईजाद कीं जो नाजुक और बारीक जंजीरों के हलक़ों (कड़ियों) से बनाई जाती थीं और हल्की और नर्म होने की वजह से जिनको जंग के मैदान का सिपाही पहन कर आसानी से चल-फिर भी सकता था और दुश्मन से महफूज रहने के लिए भी बहुत उम्दा साबित होती थीं।
परिंदों से बातचीत करना
हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम और उनके साहबजादे सुलैमान अलैहिस्सलाम को अल्लाह तआला की ओर से एक शरफ़ यह हासिल हुआ था कि दोनों बुजुर्गों को परिंदों की बोलियां समझने का इल्म दिया गया था, इसकी तफ़्सीली बहस हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के वाक़िए में आएगी।
ज़बूर की तिलावत
बुख़ारी किताबुल अंबिया में एक रिवायत नक़ल की गई है कि हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम पूरी जबूर को इतने मुख़्तसर वक़्त में तिलावत कर लिया करते थे कि जब घोड़े पर ज़ीन कसना शुरू करते तो तिलावत भी शुरू करते और जब कस कर फ़ारिग़ होते तो पूरी ज़बूर ख़त्म कर चुके होते। हज़रत दाऊद लफ़्ज़ों के अदा करने में इतनी तेज़ी की ताक़त अता कर दी गई थी कि दूसरा आदमी जिस कलाम को घंटों में अदा करे, हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम उसको रिवायत के मुताबिक़ मुख्तसर वक़्त में अदा करने पर कुदरत रखते थे।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
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