23/12/2025
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ज़िन्दगी की शाम | Zindagi ki Sham.

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Zindagi ki Sham.
Zindagi ki Sham.

किसी आदमी की अगर छुट्टी हो तो छुट्टी के दिन जब वह सुबह को उठता है तो उसके दिल में बड़ी तसल्ली होती है कि सारा दिन है, में बहुत काम समेट लूँगा। लेकिन जब ज़ोहर का वक़्त हो जाये उसी बन्दे को देखें कि परेशान हो रहा होगा कि काम सिमटे नहीं ज़ोहर का वक़्त आ गया। और वह सोचेगा कि बस अब तो मग़रिब करीब आ गयी।

तो जैसे ज़ोहर के बाद मग़रिब के करीब होने का एहसास होता है तो जो चालीस साल से ऊपर की हैं वे समझ लें कि अब हम ज़ोहर और अस्र के बीच का वक़्त गुज़ार रही हैं। और मालूम नहीं कि यह ज़िन्दगी का सूरज कब डूब जायेगा।

यूँ तो पता नहीं जवानों को भी मौत आ जाती है, बच्चों को भी मौत आ जाती है, लेकिन एक उसूल बता दिया, मिसाल समझाने के लिए बता दी, कि अगर साठ-सत्तर की उम्र को हम औसत (Average) उम्र लगा लें तो जो चालीस पैंतालीस से ऊपर की औरतें हैं उनको तो बहुत गंभीर होकर आख़िरत की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।

एक और मिसाल से यह बात ज़रा साफ हो जायेगी। क्रिकेट का खेल है, आम तौर पर दो पारियाँ खेली जाती हैं। जब कोई पहली पारी (Inning) खेलने के लिए आता है उसके दिल में बड़ा भरोसा और इत्मीनान होता है और वह बड़ा खुलकर शार्ट खेलता है, क्योंकि उसको यकीन होता है कि मैं दूसरी पारी में फिर एक बार खेलने का मौका हासिल करूँगा।

लेकिन वही खिलाड़ी अगर दूसरी पारी में खेलने आए तो वह बहुत संभल कर खेलता है, उसको पता होता है कि एक गेन्द आएगी और मेरी पारी ख़त्म हो जायेगी।

इसी तरह जो पैंतीस-चालीस साल से ऊपर की उम्र में हैं, ये औरतें अपनी ज़िन्दगी की दूसरी पारी खेल रही हैं। अब क्या मालूम कब मौत के फरिश्ते की तरफ से बुलावा आएगा और खड़े-पैर जाना पड़ जायेगा।

जब मौत का फरिश्ता आता है तो किसी को वसीयत करने की भी फुरसत नहीं मिलती। इनसान आख़िरी सलाम भी नहीं कर सकता। खड़े-पैर जाना पड़ जाता है।

जब मौत का मामला ऐसा है तो हमें चाहिये कि हम उसके लिए अभी से तैयारी शुरू कर दें। इस दुनिया में आपको खुदा के इनकारी मिल जायेंगे, नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इनकारी मिल जायेंगे, कुरआन के इनकारी मिल जायेंगे, इस्लाम के इनकारी मिल जायेंगे।

खूबसूरत वाक़िआ:-मौत का पैग़ाम

पूरी दुनिया में मौत का इनकारी कोई भी नहीं मिल सकता। हर इनसान यही कहेगा, मोमिन है या काफिर, कि एक न एक दिन मुझे मरना तो ज़रूर ही है। जब मरना ही है तो फिर क्यों न हम इस मरने की तैयारी कर लें।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….

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