Support Our Work

Choose your app or scan the QR code below

GPay Pay with GPay PhonePe Pay with PhonePe Paytm Pay with Paytm
Donate QR
15/10/2025
image 31

गौसे पाक और सिलसिला क़ादरिया | Gause Pak aur Silsila Kadariya.

Share now
Gause Pak aur Silsila Kadariya.
Gause Pak aur Silsila Kadariya.

हज़रत गौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हो की तसानीफे मुबारिका आप के मवाइज़ व इरशादाते गरामी ही उस बुलन्द मर्तबा और हिक्मत के उस आला दर्जा पर हैं कि उनकी कमा हक़्क़हु, तारीफ, उन का असर और उन के फैज़ान का इहाता करना और उनसे नताइज मुरत्तब हुए उनका बयान करना बहुत ही दुशवार है।

यह मवाइज़ व दर्स उस बुलन्दी और असर आफरीनी की उस मंज़िल पर हैं कि आप की फजीलत और आप के कमालाते इल्मी पर दलीलें कातेअ हैं लेकिन क्या अरब और क्या अजम, क्या हिन्द और क्या शाम व इराक तमाम दुनिया में आप के नामे वाला की अज़मत और फैजाने मारफत की जो धूम और शान है वह आप के कमालाते बातनी और आप के रुश्द व हिदायत के सिलसिला यानी सिलसिला कादरिया का फोग और उसकी आलमगीर इशात है। जैल के सत्तूर में इस पाक सिलसिला के बारे में मुख़्तसरन तहरीर कर रहा हूं।

हज़रत गौसुल आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने अपनी दावते हक़ के सिलसिला में अलफ़तहुर्रब्बानी में इस तरह इरशाद फरमाया हैः ऐ लोगो ! दावते हक़ कबूल करो, बेशक में दाई इलल्लाह हूं कि तुमको अल्लाह के दरवाज़े और उसकी इताअत की तरफ बुलाता हूं अपने नफ़्स की तरफ नहीं बुलाता कि मुनाफिक ही अल्लाह की तरफ मखलूक को नहीं बुलाता बल्कि अपने नफ़्स की तरफ बुलाता है।

इस अज़ीम दावत के लिये आपने उन चंद हस्तियों को इंतख़ाब फरमाया जिनमें यह जौहरे काबिल मौजूद था चुनांचे उनमें गुले सर सब्द हज़रत शैख शहाबुद्दीन उमर बिन मोहम्मद सुहरवरदी साहबे अवारिफुल मआरिफ हैं। आप उनफ़वाने शबाब में उलूमे अलिया के बड़े दिलदादा थे और आपकी तबीयत का रूजहान मन्कूलात की तरफ बहुत कम था।

यह हाल देख कर आपके अम्मे नामदार हज़रत शैख़ अबू नजीब सुहरवरदी जिनके इरशाद का शोहरा दूर दूर तक फैला हुआ था और एक अज़ीम साहबे तरीक़त बुजुर्ग शुमार होते थे अपने नौजवान बिरादरज़ादा को हज़रत की ख़िदमते बा सआदत में लेकर हाज़िर हुये और हुजूरे गौसियत में अर्ज़ किया कि मेरा यह बिरादर जादा हर वक़्त माकूलात में मशगूल रहता है हर चंद कि मैं रोकता हूं लेकिन मैं कामयाब नहीं होता।

हुजूर शैख़ सुहरवरदी से पूछा तुमने इल्मुल कलाम में कौन कौन सी किताबें पढ़ी हैं शैख सुहरवरदी ने कुतुब आमोख़ता की नाम बनाम निशान दही क़ि। हुजूर गौसे आज़म ने किताबों के नाम सुन कर अपना दस्ते मुबारक सुहरवरदी के सीना पर फेरा हाथ का फेरना था कि सीना माकूलात से बिल्कुल साफ हो गया। जो कुछ पढ़ा था सब का सब महव हो गया और वह दिल अल्लाह तआला ने जिसको नूरे हिदायत, ईकान और इल्मे लदुन्नी की सलाहियत से नवाज़ा था मारिफे इलाहिया से मामूर हो गया और काल हाल से बदल गया दिल व दिमाग की दुनिया में एक इन्कलाबे अज़ीम बरपा हो गया और आप ने फौरन दामने गौसियत को थाम लिया।

अल्लाह तआला ने शैख सुहरवरदी के ज़रिये कादरियत को दुनिया के गोशा गोशा में फैला दिया जिस का ज़िक्र बहुत इजमाल के साथ में यहां कर रहा हूं ।

हज़रत शैख सुहरवरदी का सिलसिलए तरीक्त मशरिक और मग़रिब तक बहुत जल्द फैल गया, शाम मिस्र, अरब, अजम, तुरकिस्तान और मावरा उन्नहर तक और इस बर्रे सगीर पाक व हिन्द में सिन्ध, दिल्ली और मशरिक में मिदनापुर, बंगाल और आसाम सब इस सिलसिला के रौशन सितारों की ताबनाकियों से जगमगा उठे।

हज़रत शैख शहाबुद्दीन के मुरीद खास शैख मुस्लेहुद्दीन अल मारुफ सदी शीराज़ी ने शीराज़ में इस सिलसिला को फैलाया और अपनी ज़िन्दए जावेद कुतुब गुलिस्तां व बोस्तां के ज़रिया इन तामम मुल्कों में हिक्मत व मारफत के चिराग़ रौशन किए जहां फारसी ज़बान पढ़ी और समझी जा सकती थी।

जब फित्नए तातार ने बगदाद को तबाह करने के बाद शाम की तरफ अपना रुख, किया तो सिलसिला क़ादरिया सुहरवरदीया के शैखे आज़म हज़रत अज़ीजुद्दीन बिन अब्दुस्सलाम की तहरीक पर मुजाहिदे आज़म तुर्क अजीम रुकनुद्दीन सरस ने इस फित्ना का मुकाबला एक आहिनी दीवार बन कर किया और सैले बला को रोका और शाम व अरब की सरज़मीन से उसका मुंह फेर दिया इस बतले हुर्रीयत और मुजाहिदे आजम ने शाम में तातारियों को जो पै दर पै शिकस्तें दीं वह तारीख के सफहात पर सब्त हैं मिस्र में सलतनते अब्बासीया का क्याम उन्ही की बदौलत ज़हूर में आया।

सिलसिला कादरिया और सुहरवरदीया के एक और दरख़शन्दा आफताब हज़रत शैखुल इस्लाम शैख बहाउद्दीन ज़क्रीया मुल्तानी हैं जिन के ज़रिया सिन्ध व हिन्द के जुल्मत कदे में ईमान व इरफान के चिराग रौशन हुए और इस्लाम की रौशनी से यह सियाह खाने जगमगा उठे आप की सई से ऊच और मुल्तान इस आफताब की रोशनी से मुनव्वर हैं।

बंगाल की वह सर ज़मीन जो कुफ्र व शिर्क से सियाह खाना बनी हुई थी वहां इस्लाम के पहले मुबल्लिग हज़रत शैख जलालुद्दीन तबरेजी सुहरवरदी हैं हज़रत शैख जलालुद्दीन शैखुश्शुयूख हज़रत सुहरवरदी के खलीफा आज़म थे।

ऊच में इसी सिलसिला का वह आफ‌ताब गुरुब हुआ जिसका नाम नामी हज़रत सय्यद जलाल सुर्ख सुहरवरदी है जिन के साहबजादे हज़रत शैख सैय्यद अहमद कबीर बुखारी थे। उन्होंने इस्लाम की इशाअत में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया शाह जलाल मुजर्रद जिन्होंने सिलहट में इस्लाम की शमा फ़रोज़ां की आप ही के नवासे हैं।

हज़रत ख़्वाजा हमीदुद्दीन नागौरी भी इसी खानवादा सुहरवरदीया की एक शमए फोजां हैं जिन्होंने हिन्द के मग़रिबी हिस्सा में इशाते इस्लाम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। अलगरज हिन्दुस्तान और दूसरे ममालिक में सुहरवरदी सिलसिला को जो कबूले आम और अज़ीम तब्लीगी कामयाबियां हासिल हुईं वह तमाम तर हज़रत सैय्यदना शैख अब्दुल कादिर जिलानी रजि अल्लाहु तआला अन्हो की दुआ की बरकात हैं इस खानदान में आप के लुत्फ करम से सदहा फुक़्राए कामिल और दरवेशाने मुख़िलस और मुबल्लेगीने इस्लाम पैदा हुए कि आज भी यह
आफताब इस बर्रे सगीर पाक व हिन्द में अपनी तमाम तर ताबानियों के साथ फ़रोज़ा है।

इस सिलसिला सुहरवरदीया के अलावा भी कादरियत के आफ़‌ताब ने कुफ्र की तारीक रातों में उजाला फरमाया और आप से इस कदर सलासिल तरीक्त जारी व सारी हुए कि आज भी दुनिया में जहां जहां मुसलमान आबाद हैं वहां यह सिलसिला ज़रुर मौजूद है। हर चन्द कि आप हंबली फिक्ह के पैरु और उस के शारेह थे आपकी अज़ीम तसनीफ गुन्यितुत्तालीब तरीकुल हक फिक्हे हंबली पर एक मुस्तनद कितबा है लेकिन चूंकि आप महज़ इस्लाम के दाई थे और किताबे इलाही और सुन्नते मुहम्मदी हज़रत गौसे आज़म के दीन व मज़हब, फिक्र व नज़र और वाज़ व इरशाद का मरकज़ व महवर था इस लिए आप की अज़मत का सिक्का हन्फियों के दिलों पर इस तरह बैठा हुआ है जिस तरह हंबलियों के दिलों पर, बल्कि मैं तो यह कहने में बाक नहीं करूंगा कि इस बर्रे सगीर पाक व हिन्द में हन्फी जिस कसीर तादाद में आप के गुलामों में शामिल हैं और आप के सलासिल हन्फी बुजुर्गों में जिस कदर पाए जाते हैं वह हंबलीयों से कहीं ज़्यादा हैं।

खूबसूरत वाक़िआ:-आमाल और आज़माइश।

हज़रत का तरीका एहसान व तालीम व तल्कीन भी तमाम तर किताब व सुन्नत पर मबनी व मुनहसर है इस में न फलसफए कलाम के गवामिज़ व रमूज़ हैं और न वहदतुल वजूद और वहदतुश्शहूद के मबाहिस हैं हज़रत का कल्ब नूरानी सोज़, यकीन, हुजूर और शहूद और इरफाने इलाही है और सुन्नते नब्वी उसका महवर व मरकज़ है यही बाइस है कि चार दांगे आलम में आप का डंका अब भी बज रहा है।

कादरियत के बहुत से सलासिल आप की औलाद अमजाद से जारी व सारी हुए जो फुक्हा कादरियत कहलाते हैं उर्फे आम में उन में से हर एक नकीबुल अशराफ कहलाता है।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Support Our Work

Choose your app or scan the QR code below

GPay Pay with GPay PhonePe Pay with PhonePe Paytm Pay with Paytm
Donate QR