21/08/2025
नर्मी इंसाफ़ और मुहब्बत का पैग़ाम 20250818 233151 0000

नर्मी, इंसाफ़ और मुहब्बत का पैग़ाम। Narmi Insaaf aur Mohabbat Ka paigam.

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Narmi Insaaf aur Mohabbat Ka paigam.
Narmi Insaaf aur Mohabbat Ka paigam.

हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब भी कहीं कोई लश्कर रवाना फरमाते तो उस लश्कर के अमीर को ताकीद से यह हिदायत फरमाते थे कि अपने मातहतों के साथ नर्मी का मामला करना, उनको तंगी में मुब्तला न करना। उनको बशारत और खुशखबरी देते रहना।

इसी तरह जब किसी को किसी इलाके या क़ौम का गर्वनर और अमीन बनाकर भेजते तो उनको हिदायत फ़रमा देते कि क़ौम के साथ अदल व इंसाफ और हमदर्दी का मामला करना, और उनके साथ नर्मी का मामला करना, उन्हें तंगी और सख़्ती में मुब्तला न करना, उनको दुनिया व आख़िरत में कामियाबी की बशारत देना, और आख़िरत की रग़बत दिलाते रहना और उनमें नफरत न फैलाना, और उनके दर्मियान मुवाफ़िक़त और इत्तिहाद पैदा करना और इख़्तिलाफ न फैलाना।

हदीस शरीफ के अल्फाज़ का तर्जुमा मुलाहिजा फरमाइए ।
हज़रत अबू बुरदा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु इब्ने अबी मुसा फरमाते हैं कि हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु और अबू मूसा अश्अरी को यमन रवाना फरमाया और रवानगी के वक़्त यह हिदायत फरमाई कि तुम दोनों नर्मी और आसानी का मामला करते रहना और लोगों के साथ तंगी और सख़्ती का मामला न करना और लोगों को दुनिया व आख़िरत की कामियाबी की बशारत की बातें पेश करते रहना और लोगों में तनफ़्फ़र न पैदा करना कि जिससे लोग फरार का रास्ता इख़्तियार करें और आपस में मुहब्बत व शफ़क़त का मामला करते रहना और इख़्तिलाफ व फूट की बातें न करना । ( बुख़ारी शरीफ, हिस्सा 1, पेज 426, हदीस नम्बर 2942)

नोट :- इमाम गज़ाली रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि ने लिखा है कि कलाम यानी बात चीत में नर्मी इख़्तियार कीजिए, क्योंकि अल्फाज़ की ब-निस्बत लहजे का असर ज़्यादा पड़ता है। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हराम कितना ही थोड़ा हो हलाल पर हमेशा ग़ालिब रहेगा,

खूबसूरत वाक़िआ:-वक़्त की बर्बादी खुदकुशी है।

सहीह मुस्लिम में है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने दुआ फरमाई कि ऐ अल्लाह ! जो मेरी उम्मत का वाली हो अगर वह उम्मत पर सख़्ती करे तो तू भी उसके साथ सख़्ती का मामला करना और अगर वह नर्मी करे तो तू भी उसके साथ नर्मी का मामला करना। इसलिए हर जगह ज़िम्मेदार अपने मातहतों के साथ नर्मी का मामला करें।
(सीरते आइशा रजि०, सैयद सुलैमान नदवी रह०, पेज 122)

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….

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