03/07/2025
नमाज़ का एहतिमाम। 20250702 004944 0000

नमाज़ का एहतिमाम। Namaz ka ehtimam.

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Namaz ka ehtimam.
Namaz ka ehtimam.

नमाज़ का एहतिमाम हज़रते सय्यिदुना अम्र बिन दीनार फ़रमाते हैं : मदीनए मुनव्वरा में एक शख़्स की बहन फ़ौत हुई, तो उसे तजहीज़ो तक्फ़ीन के बाद दफ़्न कर दिया गया। उस का भाई घर पहुंचा, तो याद आया कि वो दराहिम की थैली कब्र में भूल आया है।

उस ने अपने साथ एक आदमी को लिया और जा कर क़ब्र की मिट्टी हटाई, तो थैली मिल गई फिर उस ने अपने साथ वाले से कहा : तुम ज़रा दूर हो जाओ ताकि मैं अपनी बहन का हाल देखूं । चुनान्चे, उस ने एक ईंट हटाई तो कब्र में आग भड़क रही थी, वोह क़ब्र बन्द कर के अपनी मां के पास आया और अपनी बहन के अहवाल पूछे तो मां ने कहा : तुम्हारी बहन नमाज़ वक्त गुज़ार कर पढ़ती थी ।

और मेरे ख़याल में बे वुज़ू भी पढ़ लेती थी और पड़ोसियों के आराम के वक्त उन के दरवाज़ों पर कान लगा कर उन की राज़ की बातें सुनती थी यहां एक मस्अला भी समाअत फ़रमा लीजिये कि इस इब्रतनाक हिकायत से मालूम हुवा कि नमाज़ में सुस्ती करना बहुत बड़ा गुनाह है और अज़ाबे कब्र का सबब है।

हमें भी पांचों नमाजें जौको शौक के साथ अदा करनी चाहियें और नमाज़ में हरगिज़ हरगिज़ सुस्ती नहीं करनी चाहिये क्यूंकि येह मुनाफ़िकों की अलामत है कि जब मुनाफिकीन, मोमिनीन के साथ नमाज़ के लिये खड़े होते तो मरे दिल से और सुस्ती के साथ खड़े होते क्यूंकि उन के दिलों में ईमान तो था नहीं ! जिस से इबादत का जौक और बन्दगी का लुत्फ़ हासिल होता सिर्फ लोगों को दिखाने के लिये नमाज़ पढ़ते थे।

अल्लाह ने उन के बारे में पारह 5, सूरतुन्निसा, आयत नम्बर 142 में इरशाद फ़रमाया : और जब नमाज़ को खड़े हों, तो हारे जी से।तफ़्सीरे सिरातुल जिनान में इस आयते मुबारका के तहत लिखा है।कि नमाज़ न पढ़ना या सिर्फ लोगों के सामने पढ़ना जब कि तन्हाई में न पढ़ना या लोगों के सामने खुशूअ व खुजूअ से और तन्हाई में जल्दी जल्दी पढ़ना या नमाज़ में इधर उधर खयाल ले जाना, दिलजमई के लिये कोशिश न करना। वगैरा सब सुस्ती की अलामतें हैं।

अफ़सोस सद अफ़सोस ! आज हमारे मुआशरे में सिर्फ सुस्ती और काहिली की वजह से आए दिन नमाजें क़ज़ा कर दी जाती हैं जब कि गुनाहों के इर्तिकाब के लिये सुस्ती फ़ौरन चुस्ती में बदल जाती है।

बाज़ लोग तो ऐसे भी हैं कि जब उन की एक या चन्द एक नमाज़े रह जाएं, तो हफ्तों हफ्तों बल्कि महीनों महीनों तक जान बुझ कर नमाज़ नहीं पढ़ते और अगर कोई ।

इस्लामी बहनो उन पर इनफिरादी कोशिश करते हुवे नमाज़ों की तरगीब दिलाए, तो कहती हैं: “अब अगले जुमुआ से दोबारा नमाजें पढ़ना शुरू करूंगी या रमज़ान से बा काइदा नमाज़ों का एहतिमाम करूंगी।

यूं गोया किसी किस्म की शर्म व झिजक के बिगैर बड़ी बहादुरी के साथ। इस बात का इकरार किया जाता है कि नमाजें तर्क करने का येह कबीरा गुनाह, मैं जुमआ के दिन तक या रमजानुल मुबारक तक मुसल्सल जारी रखूंगी।

यक़ीनन येह सब कुछ ख़ौफ़े खुदा और शौके इबादत न होने का वबाल है, वरना जिस के दिल में अल्लाह का ख़ौफ़ और इबादत का जौको शौक होता है, वोह हर हाल में नमाज़ों की पाबन्दी करता है और अल्लाह की ना फ़रमानी से बचता है।याद रखिये ! जान बुझ कर नमाज कजा करना गुनाह और जहन्नम में ले जाने वाला काम है । अल्लाह पारह 16, सुरए मरयम की आयत नम्बर 59 में इरशाद फ़रमाता है।

तो उन के बाद उन की जगह वोह ना खुल्फ़ आए जिन्हों ने नमाजें गवाई जाएअ कीं और अपनी ख़्वाहिशों के पीछे हुवे, तो अन क़रीब वोह दोज़ख़ में “गुय्य” का जंगल पाएंगे। बयान आयते मुबारका में “गुय्य” का तज़किरा है और इस से मुराद जहन्नम की एक वादी है। सदरुश्शरीआ, बदरुत्तरीका, हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी फ़रमाते हैं: जहन्नम में एक वादी है जिस की गर्मी और गहराई सब से ज़ियादा है।

इस में एक कुंवां है जिस का नाम “हबहब” है,। जब जहन्नम की आग बुझने पर आती है, अल्लाह इस कुंवें को खोल देता है जिस से वोह यानी जहन्नम की आग ब दस्तूर भड़कने लगती है अल्लाह इरशाद फ़रमाता है जब कभी बुझने पर आएगी हम उसे और भड़का देंगे ।

कुंवां बे नमाज़ियों और जानियों और शराबियों और सूद खोरों और मां-बाप को ईज़ा यानी तक्लीफ देने वालों के लिये है। येह जहन्नम का अज़ाब और दुनिया की तक्लीफें सुना आप ने कि “गुय्य” जहन्नम में। एक वादी है जिस की गहराई और गर्मी सब से ज़ियादा है और जहन्नम की आग जब बुझने लगती है, तो इस वादी को खोल दिया जाता है।

जिस से नारे जहन्नम फिर से भड़क उठती है। ज़रा सोचिये कि इस ख़तरनाक वादी में जब बे नमाज़ी को डाला जाएगा, तो उस का क्या बनेगा ? याद रखिये ! जहन्नम अल्लाह के कहो ग़ज़ब का मज़हर है, जिस तरह उस की रहमतों और नेमतों की कोई इन्तिहा नहीं और इन्सानी अक्ल उस का अन्दाज़ा नहीं लगा सकती, इसी तरह अल्लाह के कहो गज़ब की भी कोई हद नहीं,

हर वोह तक्लीफ़ देह चीज़ जिस का तसव्वुर किया जाए मसलन किसी आले से ज़िन्दा इन्सान के नाखुन खींच लेना, किसी पर छुरियों या लाठियों से जुर्बे लगाना, किसी के ऊपर वजनदार गाड़ी चला कर उस की हड्डियां चक्नाचूर कर देना आजा काट कर नमक मिर्च छिड़कना, जिन्दा खाल उधेड़ना, बिगैर बेहोश किये ऑप्रेशन करना या मुख्तलिफ बीमारियों की तकलीफ़ मसलन सर दर्द, बुखार, पेट का दर्द या ख़तरनाक बीमारियां मसलन दिल का दौरा , सरतान (कैन्सर), गुर्दे की पथरी का दर्द, खारिश,

शदीद घबराहट वगैरा वगैरा जो भी अमराज़ या दुन्यवी मसाइबो आलाम जिन का तसव्वुर मुमकिन है वोह जहन्नम की तकलीफ़ों के मुकाबले में निहायत ही मामूली हैं। अल गरज !

खूबसूरत वाकिआ:- यौमे आशूरा की फज़ीलत।

जहन्नम का सब से हल्का अज़ाब क्या है ? इस बारे में फ़रमाने मुस्तफा सुनिये : जिस को जहन्नम का सब से हल्का अज़ाब होगा, उसे आग की जूतियां पहना दी जाएंगी जिस से उस का दिमाग ऐसे खौलेगा जैसे तांबे की पतीली खौलती है,

वोह समझेगा कि सब से ज़ियादा अज़ाब मुझ ही पर हो रहा है, हालांकि उस पर सब से हल्का अज़ाब है।
जहन्नम के अज़ाब से डर जाइये, अपने कमजोर जिस्मों पर तरस खाइये, सुस्ती उड़ाइये और गुनाहों से बचते हुवे नमाज़ों का एहतिमाम शुरू कर दीजिये ।

इन्तिहाई अफ्सोस नाक बात यह है कि फुजूल बातों और कामों में मश्गूल रह कर नमाजें क़ज़ा कर देते हैं मगर इस का एहसास तक नहीं होता कि हम मुसल्सल अल्लाह की ना फ़रमानी कर रहे हैं। वोह रब तो हमें दिन रात ढेरों नेमतें बिन मांगे अता फरमा रहा है।

मगर हमें पूरे दिन में सिर्फ पांच वक्त उस की बारगाह में सजदा करने की तौफ़ीक़ नसीब नहीं होती । अफ्सोस ! कि हम दुन्यवी बीमारियों, परेशानियों और तकलीफों से बचने के लिये लोगों के बताए हुवे ।

अवरादो वज़ाइफ़ तो फ़ौरन शुरू कर देते हैं मगर जिस रब ने कुरआने पाक में सेंक्ड़ों मरतबा नमाज़ का हुक्म दिया, हम एक मरतबा भी उस के हुक्म की तामील नहीं करते। अफ्सोस ! कि हम कब्र के अजाबों, जहन्नम की हौलनाकियों और क़ियामत की वहशतों का सुन कर भी गफ्लत की नींद सोए हुवे हैं।

याद रखिये ! हर आकिलो बालिग मर्द व औरत मुसलमान पर । रोजाना पांच वक्त की नमाज़ फ़र्ज़ है। जो नमाज़ को फ़र्ज़ न माने वोह दीने इस्लाम से खारिज है अगर्चे उस का नाम और उस के दीगर काम मुसलमानों वाले ही क्यूं न हों ! और जो नमाज़ को फ़र्ज़ तो माने मगर एक नमाज़ भी जान बूझ कर तर्क कर दे, तो वोह सख्त फासिक व गुनहगार और मुस्तहिके अज़ाबे नार है।

जब तक तौबा न करे और उस की क़ज़ा न कर ले। इस से अन्दाज़ा लगाइये कि जब एक नमाज़ को जान बूझ कर छोड़ने पर हज़ारों साल तक जहन्नम में रहना पड़ेगा, तो जो शख्स दिन भर की तमाम नमाज़ें जान बुझ कर तर्क कर देता हो बल्कि सिरे से नमाज़ ही न पढ़ता हो, तो वोह किस क़दर सख्त अज़ाब का शिकार होगा ! और याद रखिये ! जान बुझ कर नमाज़ छोड़ने वाले से तो खुद शैतान भी पनाह मांगता है।

चुनान्चे,मन्कूल है कि एक शख्स जंगल में जा रहा था,
शैतान भी उस के साथ हो लिया, उस शख़्स ने दिन भर में एक भी नमाज़ न पढ़ी यहां तक कि रात हो गई, शैतान उस से भागने लगा। उस शख्स ने हैरान हो कर भागने का सबब पूछा तो शैतान बोला मैं ने उम्र भर में सिर्फ एक बार आदमी को सजदा करने का इन्कार किया, तो मल्ऊन हुवा और तू ने आज पांचों नमाजें तर्क कर दीं, मुझे खौफ़ आ रहा है कि कहीं तुझ पर कहर नाज़िल हो और मैं भी उस में न फंस जाऊं।

हमें भी नमाज़ की पाबन्दी करते। हुए पांचों नमाजें अदा करनी चाहियें।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….

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