03/06/2025
शैतान का वसवसा। 20250523 234706 0000

शैतान का वसवसा। Shaitan ka vashwasa.

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Shaitan ka vashwasa.
Shaitan ka vashwasa.

अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हज़रत हव्वा दोनों को फरमाया कि जाओ तुम दोंनों जन्नत में रहो, और जन्नत में जहाँ चाहो और जो चाहो वह खाओ, लेकिन उस एक दरख़्त के नज़्दीक कभी नहीं जाना, हज़रत आदम व हव्वा जब जन्नत में तशरीफ़ ले गए,

तो शैतान ने उन के दिलों में वसवसा पैदा कर दिया कि यह दरख्त जिस के पास भी जाने से हमें रोका गया है ताकि हम फरिश्तों की तरह खाने पीने से वे नियाज़ न हो जाएं, शैतान ने फिर कसम खाकर उनसे कहा कि मैं तुम दोनों का खैर ख़्वाह हूं, आप इस दरख़्त से कुछ खालें।

कुछ नहीं होता, हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने शैतान के मुँह से अल्लाह की कसम सुन कर यकीन कर लिया कि यह हमारा खैर ख़्वाह ही है आप को गुमान भी न था कि कोई अल्लाह की कसम खाकर भी झूट बोल सकता है, इसलिए आप ने उस की बात का एतिबार कर लिया, और उस दरख़्त से कुछ खा लिया,

खाते ही हजरत आदम अलैहिस्सलाम व हव्वा दोनों के बदन से जन्नती लिबास उतर गया और उन में एक दूसरे से अपना जिस्म झुपा न रह सका, और फिर वह अपने बदन पर जन्नत के पत्ते चिपटाने लगे, खुदा तआला ने फरमाया कि मैंने तुम्हें उस दरख़्त से मना न किया था और यह नहीं बताया था कि शैतान तुम्हारा दुश्मन है?

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम व हव्वा दोनों अर्ज़ करने लगे, ऐ रब हमारे, हम ने अपना आप बुरा किया, अब अगर तू ने हम पर रहम न किया, और हमें न बख़्शा तो हम नुक्सान उठायें फिर आदम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला से इन अलफाज़ से दुआ मँगी।

“अल्लाहुम-म-इन्नी असअलु-क-बिजाहि मुहम्मदिन अब्दिक व करामतिही अलैक अन तग़फिरली ख़तीअती”

“ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से तेरे बंद-ए-खास मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जाह व मरतबा के तुफैल में और उसकी करामत के सदके में जो उन्हें तेरे दरबार में हासिल है, मग़फित चाहता हूँ”। यह दुआ करनी थी कि हक तआला ने उनकी मग़फिरत फरमा दी और शैतान खाइफ व खासिर रह गया !(कुरआन पः4, रू4- खज़ाइनुल-इर्फान सः10)

शैतान ने जब देखा कि आदम अलैहिस्सलाम को सज्दा न करने की वजह से मैं हमेशा के लिए मरदूद व मलऊन हूँ तो ख़बीस ने इन्तिकाम लेने के लिए झूटी कसमें खा कर हज़रत आदम व हव्वा को जन्न्त से निकाल देने की कोशिश की और खुदा तआला ने जिस दरख़्त के पास भी जाने से हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को रोका था,एक लड़की और शैतान।

उसके जरीये अपना मक़सद पाना चाहा चुनाँचि उसने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के सामने अल्लाह तआला की कसम खाकर कहा कि मैं आप का खैर ख़्वाह हूँ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह का नाम सुनकर एतिबार कर लिया और दरख़्त के पास भी न जाने को तंज़ीही समझ लिया, और उस दरख़्त से कुछ खालिया, मलूम हुआ कि शैतान की यह आदत कि वह लोगों को बहकाने के लिए अल्लाह की कसम ज़रूर खाता है।

चुनाँचि आज अगर कोई शख़्स लोगों के मजमा में कुरआन लेकर और अल्लाह की कसम खा कर कहने लगे कि मैं हनफी बल्कि असली हनफी हूँ तो जान लीजिए दाल में काला है और यह भी मलूम हुआ कि शैतान ने जहाँ खैर ख़्वाह होने की कसम खाई है वहाँ उसने खैर नहीं गुज़ारी, तो जहाँ उसने “बिइज़्ज़तिक लउग‌वियन्न्हुम अजमईन” कह कर यह कसम खा रखी है कि ऐ अल्लाह ! तेरी इज़्ज़त की कसम !

मैं तेरे सब बंदों को गुमराह कर दूँगा, वहाँ वह ख़बीस् कब खैर गुज़ारने वाला है इसलिए शैतानी दाव से हमें हर वक़्त चौकन्ना रहना चाहिए, और यह भी मलूम हुआ कि शैतान हम से ऐसी हरकतें कराना चाहता है जिस से हम नंगे और उरयाँ हो जायें। हमारा लिबास वह उतार देना चाहता है और हमें वह उरयाँ देखना चाहता है शैतान उरयाँ और र्यानियत पसंद हैं ।

चुनाँचि आज कल वह नई तहज़ीब के हाथों अपना यही काम करा रहा है और यह भी मलूम हुआ कि हजरत आदम अलैहिस्सलाम व हव्वा अलै. हस्सलाम का अपने बदन पर जन्नत के पत्ते चिपटाना इस अम्र पर शाहिद है कि आदमियत यह है कि उर्यानी से नफरत हो और शर्म की चीजों को छुपाया जाए।

पिछले दिनों एक अख़बार में मग़रिब की सूरते हाल पढ़ी थी कि वहाँ नंगे मर्द औरतें और बच्चे साहिलों की रेत पर धूप में लेटे बैठे या खड़े हुए बातें कर रहे होते हैं, और जहाँ सर झुक जाना चाहिए वहाँ आँख नहीं झुकतीं !

यह सब कुछ शैतानी हरकतें हैं, हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के बेटों यअनी आदमियों को चाहिए कि आदमी बनें और उर्यानी इख़्तियार न करें मगर आह ! -नई तहज़ीब को निस्बत नहीं है आदमियत से जनाब डारबन को हज़रते आदम से क्या मतलब और यह भी मलूम हुआ कि अल्लाह तआला से मग़फिरत तलब करने के लिए सब से बड़ा कारगर वसीला हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाम नामी और इस्मे गिरामी और आप की ज़ात बा बरकात है खुदा तआला अपने महबूब के सदके में खता मुआफ फरमा देता है।

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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