हज़रत अबूबक्र सिद्दीक और इश्के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम:-
जब नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम मर्जुल-वफात की हालत में थे तो हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु नमाज़ की इमामत करवाते थे। एक बार नमाज़ पढ़वा रहे थे कि नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम तशरीफ लाए तो अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु फौरन पीछे हटे। नमाज़ से फारिग होने पर नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया, अबूबक्र ! मैं खुद तुम्हें हुक्म कर चुका था तो तुमको अपनी जगह पर खड़े रहने से कौन सी चीज़ रुकावट थी।
अर्ज किया या रसूलुल्लाह ! अबू कहाफा का बेटा इस लायक नहीं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आगे बढ़कर नमाज़ पढ़ाए।
जब नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने दुनिया से पर्दा फरमा लिया तो सहाबा किराम पर ग़म का पहाड़ टूट पड़ा। हज़रत उमर जैसे बड़े दर्जे के सहाबी हाथ में तलवार लेकर खड़े हो गए कि जिसने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फौत हो गए, मैं उसका सर कलम कर दूँगा। जब अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु को पता चला तो आप तशरीफ लाए।
बुखारी शरीफ में है, बस अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु आए और नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के चेहरे से चादर हटाकर माथे का बोसा लिया और कहा आप पर मेरे माँ-बाप कुर्बान। आपने ज़िन्दगी भी पाकीज़ा गुज़ारी और पाकीज़गी से ही ख़ालिक को जा मिले।
हज़रत सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु को कुछ अलामतों से पता चल चुका था कि अब महबूब से जुदाई होने वाली है। इसलिए जब सूरः नसर नाज़िल हुई तो सहाबा किराम खुश हुए मगर आशिके ज़ार अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु दिल थामकर मस्जिद के कोने में रोने बैठ गए। सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने कहा लोग फौज दर फौज इस्लाम में दाखिल होंगे तो यह खुशी का पैग़ाम है। फरमाया, हाँ लेकिन जब काम पूरा हो गया तो महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी तो महबूबे हकीके से जा मिलेंगे। मैं जुदाई के तसव्वुर से बैठा रो रहा हूँ।
जब फतेह मक्का के दिन अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु के वालिद अबू कहाफा ईमान लाए तो नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने बहुत खुशी का इज़्हार फरमाया। इस पर सच्चे आशिक ने कहा, कसम है उस ज़ात की जिसने आपको दीने हक़ के साथ भेजा है कि उनके इस्लाम लाने से मुझे आपके चचा अबू तालिब के इस्लाम लाने की ज़्यादा खुशी होती। (असाबा) Ishq va Muhabbat ke Chand Bikhre Moti.
हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु इश्के रसूल में इतना कमाल हासिल कर चुके थे कि अब उनको अपने महबूब की शान में ज़रा सी गुस्ताख़ी भी बरदाश्त नहीं थी। चुनाँचे ईमान लाने से पहले एक बार उनके वालिद ने नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की शान में कोई ना मुनासिब बात कर दी तो हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक ज़ोरदार थप्पड़ रसीद किया।
एक बार अबूजहल ने नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की शान में कोई गुस्ताख़ी की तो अबूबक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु शेर की तरह उस पर झपटे और फरमाया, तू दफा हो जा और जाकर लात व मनात की शर्मगाह को चाट। यह सबूत है इस बात का कि इश्क मसलेहत अदेश नहीं हुआ करता। इस्लामी अख्लाक व तहज़ीब की फज़िलत।
जब नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने पर्दा फरमा लिया तो मदीने के आसपास के लोग दीने इस्लाम से फिर गए। सियासी हालात नाजुक हो गए। अक्सर सहाबा की राए थी कि उसामा रज़ियल्लाहु के लश्कर को वापस बुला लिया जाए जिस को नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम कैसर व रोम के मुकाबले में रवाना कर चुके थे लेकिन हज़रत अबूबक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया, कसम है उस ज़ात की जिसके सिवा कोई माबूद नहीं, अबूबक्र से हर्गिज़ नहीं हो सकता कि उस लश्कर को वापस करे जिसे अल्लाह के महबूब ने आगे भेजा है।
मैं उस लश्कर को हर्गिज़ वापस नहीं बुलाऊँगा चाहे मुझे यह यकीन हो कि कुत्ते हमारी टांगे खींच कर ले जाएंगे। इश्क का फैसला अक़्ल के फैसले के खिलाफ था। लेकिन दुनिया ने देखा कि खैर उसी में थी।.
साज़िशें अपने आप दम तोड़ गयीं। दुश्मनों के हौसले पस्त हो गए, सियासी हालात की काया पलट गई। इश्क एक बार फिर जीत गया।
हज़रत अबूबक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपनी वफात से कुछ घंटे पहले हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा कि नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की वफात किस दिन हुई और कितने कपड़ों में कफन दिया गया। मकसद यह था कि मुझे भी वफात का दिन और कफन नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की तरह नसीब हो। ज़िन्दगी में तो मुशाबिहत थी ही सही मरने में भी मुशाबिहत मतलूब थी।
हज़रत अबूबक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने वफात से पहले वसीयत की थी कि जब मेरा जनाज़ा तैयार हो जाए तो रौज़-ए-अक्दस के दरवाज़े पर ले जाकर रख देना अगर दरवाज़ा खुल जाए तो वहाँ दफन कर दें वरना जन्नतुल-बकी मे दफन करना। लिहाज़ा जब आप का जनाज़ा दरवाज़े पर रखा गया तो ताला खुल गया और दरवाज़ा भी खुल गया।
और एक आवाज़ सब सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने सुनी, कहा एक दोस्त को दुसरे दोस्त की तरफ ले आओ। (इश्के रसूलः 67-69, शवाहिद नबुव्वत)
हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु और इश्के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कुछ अनोखे नमूने :-
सैय्यदना हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु बहुत ही साफ और निखरी हुई शख़्सियत के मालिक थे। जब कुफ्र की हालत में थे तो नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम को शहीद करने की नीयत से घर से निकले। जब ईमान कुबूल कर लिया तो बैतुल्लाह शरीफ के करीब होकर ऐलान किया, ऐ कुरैशे मक्का! अब मुसलमान खुल्लम खुल्ला नमाज़ पढ़ेंगे। जो अपनी बीवी को बेवा और बच्चों को यतीम करवाना चाहता है वह उमर के मुकाबले में आए। Ishq va Muhabbat ke Chand Bikhre Moti.
आपके ईमान से अल्लाह तआला ने मुसलमानों को ताकत बख़्शी। एक बार दिल में आया कि नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम मुझे अपनी जान के अलावा हर चीज़ से ज़्यादा अज़ीज़ हैं। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हकीकत को वाज़ेह फरमाया तो कहने लगे कि ऐ अल्लाह के नबी! अब आप मुझे अपनी जान से भी ज़्यादा अज़ीज़ हैं। फिर सारी ज़िन्दगी इसी पर जमे रहे। इस जमे रहने पर कुछ मिसालें नीचे लिखी हैं :
(1) फतेह मक्का में हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु अपने खच्चर पर सवार हज़रत अबू सुफियान बिन हर्ब को बिठाकर लाए और नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में अर्ज किया ऐ अल्लाह के नबी ! मैंने अबू सुफियान को पनाह दी। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज किया ऐ अल्लाह के नबी इस दुश्मने खुदा ने आपको बहुत तकलीफें पहुँचायीं मुझे इजाज़त दें कि मैं इसका सर काट दूँ।
हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ मुतवज्जेह होकर कहा कि ऐ उमर ! अगर अबू सुफियान कबीला बनी अदी में से होते तो आप ऐसा न कहते। जवाब में हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा ऐ अब्बास ! जिस दिन आप इस्लाम लाए तो आपका ईमान लाना मुझे अपने वालिद ख़त्ताब के ईमान लाने से ज़्यादा महबूब था इसलिए कि आपके ईमान लाने से नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम को खुशी हुई थी। इससे मालूम हुआ कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु अपने आका की खुशी को हर चीज़ पर तरजीह देते थे। (बैहिकी, बज़्ज़ार, असाबा)
(2) नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के सामने एक बार एक यहूदी और मुनाफिक का मुकदमा पेश हुआ। क्योंकि यहूदी हक़ पर था लिहाज़ा नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने उसके हक़ में फैसला दे दिया। मुनाफिक ने सोचा कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु यूहदियों पर सख्ती करते हैं। ज़रा उनसे भी फैसला करवा लें।
जब हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को मालूम हुआ कि नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम फैसला दे चुके हैं और यह मुनाफिक अपने हक़ में फैसला करवाने की नीयत से मेरे पास आया है। आप अपने घर से तलवार लाए और मुनाफिक की गर्दन उड़ा दी। फिर कहा जो नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के फैसले को नहीं मानता उमर उसका इसी तरह फैसला करता है। (तारीख खुलफा स० 88)
(3) हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु जब विसाले नबवी का यकीन हो गया तो उन्होंने यह कलिमात कहे या रसूलुल्लाह ! आप पर मेरे माँ-बाप कुर्बान हों। आप खजूर के एक तने के साथ हमें खुत्वा दिया करते थे। जब लोगों की कसरत हुई तो आपने एक मिम्बर बनवाया ताकि सब को आवाज़ पहुँचा सकें। आप मिम्बर पर बैठे तो पेड़ आपकी जुदाई पर रोने लगा। आपने अपना हाथ उस पर रखा तो वह चुप हुआ। जब एक तने का आप की जुदाई में यह हाल हुआ तो आपकी उम्मत को आपके फिराक पर ज़्यादा नाला व फरियाद करने का हक पहुँचता है। (अज़मते इस्लाम स० 7)
(4) हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने दौरे खिलाफत में हज़रत उसामा बिन जैद रज़ियल्लाहु अन्हुमा का वज़ीफा साढ़े तीन हज़ार और अपने बेटे अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा का वज़ीफा तीन हज़ार मुकर्रर किया। इब्ने उमर ने पूछा कि आपने उसामा को तरजीह क्यों दी। वह किसी जंग में मुझसे आगे नहीं रहे। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया कि उसामा नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम को तुम्हारे से ज़्यादा महबूब था और उसामा का बाप तुम्हारे बाप से ज़्यादा नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम को प्यारा था। बस मैंने नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के महबूब को अपने महबूब पर तरजीह दी। (तिर्मिज़ी, किताबुल मनाकिब बिन हारसा) Ishq va Muhabbat ke Chand Bikhre Moti.
(5) एक बार हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने शिफा बिन्त अब्दुल्लाह अदविया को बुला भेजा। वह आयीं तो देखा कि आतिका बिन्ते उसैद पहले से मौजूद थीं। कुछ देर बाद हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु दोनों को एक-एक चादर दी लेकिन शिफा की चादर कम कीमत की थी। उन्होंने कहा कि मैं आपकी चचा ज़ाद बहन हूँ और इस्लाम में पुरानी हूँ, आपने मुझे ख़ास इसी मक़सद के लिए बुलाया है, आतिका यूँही आ गई थीं। आप ने फरमाया वाकई यह चादर मैंने तुम्हें देने के लिए रखी थी लेकिन जब आतिका आ गयीं तो मुझे नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की रिश्तेदारी का लिहाज़ करना पड़ा। (असाबा, तज़किरा आतिका बिन्त उसैद)
(6) अपने दौरे ख़िलाफ्त में हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु एक बार रात को गश्त कर रहे थे। आपने एक घर से किसी के अश’आर पढ़ने की आवाज़ सुनी। जब करीब हुए तो पता चला कि एक बूढ़ी औरत नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की मुहब्बत और जुदाई में अश’आर पढ़ रही है। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की आँखों में आँसू आ गए और दरवाजा खटखटाया। बूढ़ी औरत ने हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को देखा तो हैरान हुई और कहने लगी अमीरुल मुमिनीन आप रात के वक़्त मेरे दरवाज़े पर। आपने फरमाया हाँ मगर एक फरियाद लेकर आया हूँ कि वह अश’आर मुझे दोबारा सुना दो जो आप पढ़ रही थीं। बूढ़ी औरत ने अश’आर पढ़े । ईमान की फज़िलत।
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नेक और अच्छे लोग दुरूद पढ़ रहे हैं। वह तो रातों को जागने वाले और सुबह के वक़्त रोज़ा रखने वाले थे। मौत तो आनी ही है। काश मुझे यकीन हो जाए कि मरने के बाद मुझे महबूब का विसाल नसीब होगा।
हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु वहीं ज़मीन पर काफी देर तक रोते रहे। दिल इतना गमज़दा हुआ कि कई दिन बीमार रहे।
हज़रत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हु की उलफ्त व मुहब्बत बारगाहे नबुब्बत में :-
(1)जब सुलह हुदैबिया के मौके पर हज़रत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हु को नुमाइन्दा बनाकर मक्का मुकर्रमा भेजा गया तो कुरैशे मक्का ने मुसलमानों को मक्का मुकर्रमा में दाखिल होने की इजाज़त नहीं दी। जब सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को पता चला तो वह बहुत दुखी हुए। बाज़ ने कहा कि वह खुशकिस्मत हैं कि बैतुल्लाह का तवाफ़ करके आएंगे। नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया कि उस्मान मेरे बगैर तवाफ नहीं करेंगे।
हज़रत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हु वापस आए तो सहाबा किराम ने पूछा कि क्या बैतुल्लाह का तवाफ भी किया? उन्होंने जवाब दिया कि अल्लाह की कसम ! मुझे
तवाफ करने के लिए कुरैश इसरार करते रहे अगर मैं वहाँ एक साल भी ठहरता तो नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के बगैर तवाफ न करता।
(2) एक बार हज़रत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हु जब नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम हज़रत अबूबक्र व हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा के साथ अपने घर की तरफ चले तो हज़रत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हु सारे रास्ते नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के कदम मुबारक की तरफ देखते रहे। सहाबा किराम ने जब यह बात नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम को बताई तो आपने हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से इसकी वजह मालूम की। आपने अर्ज किया कि ऐ अल्लाह के महबूब आज मेरे घर में इतनी मुक़द्दस हस्ती आई है कि मेरी खुशी की हद नहीं। मैंने नीयत की थी कि आप जितने कदम अपने घर से चलकर यहाँ आएंगे मैं उतने गुलाम अल्लाह के रास्ते में आज़ाद करूंगा। (जामे-उल-मौजिज़ात) (इश्के रसूल स० 72-73) Ishq va Muhabbat ke Chand Bikhre Moti.
हज़रत अली मुर्तज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु की अकीदत व मुहब्बत बारगाहे रिसालत में :-
(1) हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को अपने लड़कपन से ही सरवरे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ गहरा ताल्लुक था। इसीलिए आफताबे रिसालत की किरने जैसे ही उगीं उन्होंने लड़कों में से सबसे पहले ईमान लाने की सआदत हासिल की। छोटी उम्र में इन्सान में ख़ौफ़ और डर ज़्यादा होता है मगर इश्क का यह असर है कि इन्सान को नतीजे से बेपरवाह बना देता है।
लिहाज़ा हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने ईमान कुबूल करने में देर नहीं लगाई। जब नबी अलैहिस्सलात वस्सलाम ने हिजरत का इरादा फरमाया तो उस वक़्त आपके पस लोगों की अमानतें मौजूद थीं। इस सादिक और अमीन जात ने हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को चुना और हुक्म दिया कि अली! तुम मेरे बिस्तर पर लेट जाओ और सुबह को अमानतें लोगों के सुपुर्द कर देना। हज़रत अली की दिलेरी व बहादुरी पर कुर्बान जाएं कि वह बिला ख़ौफ व ख़तर चारपाई पर लेट गए। नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के हुक्म पर जान की बाज़ी लगा देना उनका महबूब मशगुला था।
(2) हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम को आख़िरी गुस्ल देते हुए जो तारीख़ी अल्फाज़ कहे वे पूरी उम्मत के जज़्बात की तर्जुमानी करते हैं: मेरे माँ-बाप आप पर कुर्बान, आपकी वफात से वह चीज़ जाती रही जो किसी दूसरी की मौत से नहीं गई थी यानी ‘वही आसमानो’ का सिलसिला कट गया। आपकी जुदाई अज़ीम सदमा है अगर आपने सब्र का हुक्म न दिया होता और आह व ज़ारी से मना न किया होता तो हम आप पर आँसू बहाते जबकि दर्द का और ज़ख़्म का ईलाज फिर भी न होता । (इश्के रसूल स० 73-74)
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…