हज़रत ख़्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी का वाकिआ।Hazrat Khwaja Qutbuddin bakhtiyar kaki ka waqia.

हज़रत ख़्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी का वाकिआ। 20241008 215715 0000

आप सुलतानुल हिन्द हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन अजमेरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के जलीलुल कद्र खलीफा और हिन्दुस्तान के अज़ीमुल कद्र सूफिया में थे। और बड़े मकबूल बुजुर्ग थे।

दुनिया से बेनियाज़ी और फाकाकशी में मुम्ताज़ थे और यादे इलाही में बड़े डूबे हुए थे। अगर कोई आपसे मिलने के लिए आता तो थोड़ी देर के बाद आपको इफाका होता और आप अपने आप में आते। उसके बाद आने वाले की तरफ मुतवज्जह होते। अपनी या आने वाले की बात कह सुनकर फरमाते कि अब मुझे माफ करो और फिर यादे इलाही में मशगूल हो जाते। अगर आप की कोई औलाद होती तो उस वक्त आपको ख़बर न होती थोड़ी देर के बाद आप को ख़बर होती। (अखबारुलअख़्यार, पे0: 59)

कहा गया है कि हज़रत सिकज़मी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि के मकान पर सुहबते अहबाब (दोस्तों की महफिल) गर्म थी। हज़रत ख़्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि भी वहाँ मौजूद थे कि उस महफिल में एक पढ़ने वाले ने हज़रत शेख अहमद जामी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि का यह शेर पढ़ा। “खंजरे तरलीमो रज़ा के शहीदों को हर घड़ी गैब से एक नई ज़िन्दगी अता होती है।”Hazrat Khwaja Qutbuddin bakhtiyar kaki ka waqia.

हज़रत ख़्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि पर उस शेर से एक बज्द (जोश व मस्ती) तारी हुआ और चार दिन रात उसी शेर से हैरतज़दा रहे। और पचवें दिन रबिउलअव्वल शरीफ की चौदहवीं रात 633 हि0 में आपने इन्तिकाल फरमाय (अखबारुलअख्यार, पे०ः 61)

हज़रत शेख अब्दुलहक देहलवी बुखारी अलैहिर्रमतु वरिज़वान फरमाते हैं कि आपके पड़ोस में एक बनिया रहता था। शुरू-शुरू में आप उस से कर्ज़ लेते थे और उस से फरमा देते कि जब तुम्हारा कर्ज़ तीस दिर्हम तक हो जाए तो उस से ज़्यादा न देना। जब अपको जीत हासिल होतीं तो आप कर्ज़ अदा फरमादेते।

उसके बाद आप ने पक्का इरादा कर लिया कि कभी कर्ज़ न लूँगा। उसके वाद अल्लाह के फ़ज़्लो करम से एक रोटी आप के मुसल्ले के नीचे से निकल आती उसी पर तमाम घर वाले गुज़ारा कर लेते। और इसी लिए आपको “काकी” कहते हैं कि “काक” अफगानी ज़बान में रोटी को कहा जाता है। (अखबारूलअख्यार, पे०ः 60)

और ख़्वाजा अमीर खुर्द किर्मानी लिखते हैं कि सुलतानुल मशाइख हज़रत महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फरमाते थे एक ज़माने में हज़रत कुतबुद्दीन बख़्तियार काकी, हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुलतानी और हज़रत जलालुदीन तबरेज़ी कुद्दीस सिरूहुम मुलतान में तशरीफ फ़रमा थे कि अचानक काफिरों का लश्कर मुलतान के किले की दीवार के नीचे पहुंच गया।हज़रत गौसे पाक का अक़ीदा

मुलतान का वाली नासिरूद्दीन कुबाचा उन बुजुर्गों की खिदमत में आया और उन मलऊनों से हिफाज़त के लिए अर्ज किया। हज़रत शैख कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुललाहि तआला अलैहि ने एक तीर कुबाचा के हाथ में दे कर फरमाया कि उसे दुश्मन के लश्कर की जानिब रात में अंधादुंध फेंक देना। चुनाँचे कुबाचा ने ऐसा ही किया। जब दिन निकला तो एक भी काफिर वहाँ नही था। (सियरूलऔलिया, पे०ः 117)

ख़्वाजा खुर्द किर्मानी और फ़रमाते हैं कि मलिक इख़्तियारूद्दीन ऐबक हाजिब ने कुछ नकद रकम नज़राने के तौर पर कुतबुलअक्ताव हज़रत कुतबुद्दीन बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की खिदमत में हाज़िर हो कर पेश की लेकिन हज़रत ने कुबूल नहीं फरमाया। इसके बाद आपने उस बोरिए को जिस पर आप बैठे हुए थे उठाया और मलिक इख़्तियारूद्दीन को दिखाया कि बोरिए के नीचे एक नदी चाँदी की बह रही है। फिर फ़रमाया अब तुम्हें अंदाज़ा हो गया कि मैं तुम्हारी इस लाई हुई रकम की हाजत नहीं रखता। (सियरूलऔलिया, पे०ः 120)Hazrat Khwaja Qutbuddin bakhtiyar kaki ka waqia.

हज़रत मीर अब्दुलवाहिद बिलगिरामी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फरमाते हैं कि सुलतान शम्सुद्दीन अल्तमश शाहाना शान व शौकत के साथ काज़ी हमीदुद्दीन और हज़रत ख़्वाजा कुतबुद्दीन रहमतुल्लाहि तआला अलैहिमा की खिदमत में हाज़िर हुए। यह दोनों हज़रात वुजू से फारिग हो कर तहिय्यतुल वुजू (नफ़्ल नमाज़) अदा कर रहे थे।

जब सुलतान शम्सुद्दीन ने कदमबोसी की सआदत हासिल कर ली और अदब से बैठ गए तो बोले कि बन्दा भूखा है, काज़ी हमीदुद्दीन ने खादिम से फरमाया कि खाना अगर मौजूद हो तो ले आओ। सुलतान ने कहा कि बन्दे को गैब से खाना दीजिए। काज़ी साहिब मुसकुराए और हज़रत ख़्वाजा कुतबुद्दीन ने आस्तीन में हाथ डाल कर दो सफेद गर्म रोगनी रोटियां निकालीं। और सुलतान शम्सुद्दीन के हाथ पर रख दीं।

काज़ी हमीदुद्दीन ने उस जगह से कहा कि जहाँ वुजू किया था कुछ कीचड़ उठाली तो वह हलवा हो गई और बादशाह को दे दी गई। उसके बाद काज़ी हमीदुद्दीन ने शैख सादुद्दीन से फरमाया कि पान भी होना चाहिए। शैख सादुद्दीन ने अस्तीन में हाथ डाला और छालिया, कत्था, चूना लगा हुआ पान सुलतान के हाथ पर रख दिया। यह पान भी आलमे गैब से था।

सुलतान शमसुद्दीन ने कहा कि आपकी बारगाह का कुत्ता हूँ। अगर तमाम लश्करी यह रोटी और हलवा और पान खालें तो बड़ा अच्छा हो। ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी ने फरमाया कि अपने लश्करियों से कहो कि अपने-अपने हाथ आसमान की तरफ करलें। बादशाह के हुक्म के मुताविक पूरे लश्कर ने आसमान की तरफ कर लिए।

ख़्वाजा कुतबुद्दीन ने अपनी दोनों अशतीन झाड़ीं तो हर शख़्स के हाथ पर दो-दो रोटियां पहुंच गईं। और उस कीचड़ से हलवा पैदा हुआ। शैख सादुद्दीन ने भी अपने हाथ झाड़े तो हर एक के हाथ पर छालिया कत्था और चूना लगा हुआ पान पहुंचा। शैख सादुद्दीन रहमतुल्लाहि तआला अलैहि को इसी वजह से तम्बूली कहते हैं। (सव-ए-सनाविल शरीफ, पे०ः 446)

इन वाकिआत से हज़रत ख़्वाजा कुतबुद्दीन बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने अमली तौर पर अपना यह अकीदा साबित कर दिया कि ख़ुदा-ए-तअला ने मुझे तरह-तरह के तसर्रुफ़ात (अमल-दख़ल) व इख़्तियारात की कुव्वत बख़्शी है।Hazrat Khwaja Qutbuddin bakhtiyar kaki ka waqia.हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का अक़ीदा।

यहां तक कि मैं असतीन झाड़ कर लोगों के हाथों में गैब से रोटियां पहुंचा देने की ताकत रखता हूँ और आखिरी वाकिए से मालूम हुआ कि हज़रत काज़ी हमीदुद्दीन नागौरी का इन्तिकाल 625 हि०) का यह अकीदा था कि मुझे कीचड़ को हलवा बनाने पर कुदरत है। और शैख सादुद्दीन तम्बूली का यह अकीदा था कि में छालिया के साथ चूना और कत्था लगा हुआ पान गैब से लाने की ताकत रखता हूँ।

अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

Sharing Is Caring:

Leave a Comment