
मेराज की रात नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का एक ऐसी क़ौम पर गुज़र हुआ जिनकी शर्मगाहों के आगे और पीछे चिथड़े लिपटे हुए थे। और वह मवेशियों की तरह चर रहे थे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा यह कौन लोग हैं?
हज़रत जिब्रिल अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! ये वह लोग हैं जो अपने माल की ज़कात अदा नहीं करते थे और फ़क़ीरों और मिस्कीनों पर रहम नहीं करते थे। अल्लाह तआला का इरशाद गिरामी है और वह लोग जो सोना और चांदी जोड़ कर रखते हैं और उसे अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते उन्हें खुशख़बरी सुना दो दर्दनाक अज़ाब की।(तौबा : 34)
जिस दिन वह माल तपाया जायगा जहन्नम की आग में फिर उससे उनकी पेशानियां और करवटें और पीठें दागेंगे। यह है वह जो तुमने अपने लिये जोड़ कर रखा था अब इसको जोड़ने का मज़ा चखो। (तौबा : 35)
अल्लामा इब्ने हजर मक्की रहमतुल्लाह अलैहि ने अपनी किताब ज्वाजिर में बयान फरमाते हैं कि तआबयीन की एक जमाअत वक़्त के बुजुर्ग हज़रत अबू सनान रहमतुल्लाहि अलैहि से मुलाक़ात के लिये उनकी खिदमत में हाज़िर हुई।
आपने फरमाया कि मेरे हमसाया का भाई फौत हो गया है और मैं उसके पास ताज़ियत के लिये जा रहा हूँ। आप अपने ताबिईन की जमाअत के साथ अपने हमसाया के घर तशरीफ लाये। देखा कि वह शख़्स बहुत ही रो रहा है।
आप उसे तसल्ली देते हैं लेकिन वह रोये जा रहा है। आपने उसे कहा कि देखो मौत व हयात अल्लाह तआला के क़ब्ज़े कुदरत में है तुम सब्र करो। उसने कहा कि मुझे तो अपने भाई का सुबह व शाम का अज़ाब रुला रहा है। इसने वाक़िया बताते हुए कहा कि जब मेरे भाई को क़ब्र में दफन कर दिया गया और मिटटी डालकर क़ब्र तैयार कर दी गई तो लोग वापिस चले गये और मैं उसकी क़ब्र के पास बैठ गया।
अचानक क़ब्र से आवाज़ आई। अफसोस हाय अफसोस ! लोग मुझे अकेला छोड़कर चले गये और मैं अज़ाब की मुसीबत उठा रहा हूँ। हालांकि मैं नमाज़ पढ़ता था और रोज़े रखता था जब मैंने यह आवाज़ सुनी तो मैं रोने लगा। मैंने बेखुदी के आलम में क़ब्र की मिटटी हटाना शुरू की ताकि मैं देखूं कि मेरे भाई का क़ब्र में क्या हाल है जब मैंने मिटटी हटाई तो देखा कि मेरे भाई के गले में आग का तौक़ है जो उसे जला रहा है।क़ब्र में शराब की सज़ा। Qabr me sharab ki saza.
मैंने अपनी पुरजोश मोहब्बत के पेश नज़र इसके गले से तौक़ हटाने के लिये हाथ बढ़ाया तो मेरा हाथ जलने लगा। मैंने जल्दी से हाथ खिच लिया और क़ब्र पर मिटटी डालकर वापिस आ गया। वह बुजुर्ग पूछने लगे तेरे भाई के अमल क्या थे इसने कहा कि वह नमाज़ पढ़ता था रोज़े रखता था लेकिन ज़कात अदा नही करता था वह बुजुर्ग कहने लगे कि ठीक है तेरे भाई को यही अज़ाब होना चाहिये था।
क्योंकि अल्लाह तआला का इरशाद है “और जो बुख़्ल करते हैं इस चीज़ से जो अल्लाह ने उन्हें अपने फज़ल से दी हरगिज़ उन्हें अपने लिये अच्छा न समझें बल्कि वह उनके लिये बुरा है। अनक़रीब वह जिसमें बुख्ल किया था क़यामत के दिन उनके लिये गले का तौक़ होगा। (आले ईमरान: 180)
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…