एक औरत के दिल में बच्चे की कितनी मुहब्बत होती है इसका कोई अन्दाज़ा नहीं लगा सकता। जवान बच्चियाँ इस बात को नहीं समझ सकतीं। जब तक वे ज़िन्दगी के उस हिस्से तक न पहुँचें।
जब खुद माँ बनेंगी तब महसूस होगा कि माँ की मुहब्बत क्या चीज़ है। यह अल्लाह रब्बुल्-इज़्ज़त ने माँ के दिल में रख दी। क्योंकि उसे परवरिश करनी थी, उसे बच्चों को पालना था। माँ के दिल में ऐसी मुहब्बत है कि बच्चों को हर मामले में अपने ऊपर तरजीह देती है।
एक बच्ची जिसकी शादी को चन्द साल हो गये, औलाद नहीं हो रही। अपने घर में गमगीन बैठी मुसल्ले पर रो रही है, दुआयें माँग रही हैः ऐ अल्लाह! मुझे औलाद अता फरमा दे। अगर कोई इस बच्ची से पूछे कि तुम्हें अल्लाह ने हुस्न व जमाल और खूबसूरती अता फ़रमायी है, अच्छी तालीम अता की, मुहब्बत करने वाला शौहर अता किया, माल व दौलत के ढेर अता किये।
दुनिया की इज़्ज़तें अता कीं। हर नेमत तुम्हारे पास मौजूद है। क्यों परेशान हो? वह जवाब देगी कि एक नेमत ऐसी है जो सबसे बड़ी है। मैं अल्लाह से वह माँग रही हूँ। यह हज पर जायेगी तो तवाफ़े-कांबा के बाद औलाद की दुआयें करेगी। ‘मकामे इब्राहीम’ पर सज्दे करेगी तो औलाद की दुआयें करेगी। काबा के ‘गिलाफ’ को पकड़ेगी तो औलाद की दुआयें करेगी।
तहज्जुद की नमाज़ पढ़ेगी तो औलाद की दुआयें करेगी। कभी शबे-कद्र में जागना नसीब हो तो औलाद की दुआयें करेगी। किसी नेक बुजुर्ग की महफिल में जाने का इत्तिफाक हुआ तो औलाद की दुआयें करेगी। आख़िर यह कैसी नेमत है। जिसकी वजह से मग़मूम है, परेशान है।
हालाँकि बच्ची जानती है कि जब मैं माँ बनने लगूँगी तो नौ महीने का समय मेरी बीमारी में गुज़रेगा। न मेरा दिल कुछ खाने को चाहेगा। जो खाऊँगी कई बार वह भी बाहर निकल आयेगा। मुझे भूख बरदाश्त करनी पड़ेगी। बीमारों जैसी ज़िन्दगी गुज़ारनी पड़ेगी। मगर उसके दिल में ऐसी मुहब्बत होती है कि इस सब को बरदाश्त करने के लिए तैयार होती है।
उसको यह भी पता है कि जब बच्चे की पैदाईश का वक़्त आता है तो औरत को इस कद्र तकलीफ़ होती है कि उसकी ज़िन्दगी और मौत का मसला होता है। बच्चा अपंग भी हो सकता है, माँ की मौत भी हो सकती है। लेकिन इस सबके बावजूद इस मशक्कत को उठाने के लिए तैयार है।
उसे यह भी पता है कि जब बच्चा हो जायेगा तो दो साल के लिए मुझे रातों को सोने का मौका नहीं मिलेगा। मैं सारा दिन बच्चे के काम करूँगी और रात को भी बच्चे की ख़ातिर जागूँगी।
उसको अपनी बेआराम और नींद से ख़ाली रातों का पता होता है। उसको यह भी मालूम है कि मुझे बच्चे की ख़िदमत चन्द घन्टे नहीं बल्कि चौबीस घन्टे करनी पड़ेगी। मगर उसकी वह ख़ादिमा बनने के लिए तैयार है। आख़िर क्यों?
खूबसूरत वाक़िआ:चेहरे की खूबसूरती फानी |
इसलिये कि अल्लाह रब्बुल्-इज़्ज़त ने उसके दिल में औलाद की मुहब्बत डाल दी। डॉक्टरों को चेकअप करायेगी। किसी से पढ़ने का अमल लेगी। रात की तन्हाईयों में कुरआन पढ़-पढ़कर अल्लाह से माँगेगी। आख़िर यह क्या है? यह औलाद की मुहब्बत है।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
