हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने इरशाद फरमाया कि मुझसे हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने बयान किया और सच बयान किया कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः जो कोई शख़्स कोई गुनाह कर बैठे, फिर उसके बाद वुजू करे, नमाज़ पढ़े, फिर अल्लाह से मग़फिरत तलब करे तो अल्लाह तआला ज़रूर उसको माफ कर देगा। उसके बाद आपने यह आयत तिलावत फरमाई किः “वल्लज़ी-न इज़ा फ़-अलू फाहिश-तन्” (इस पूरी आयत का तर्जुमा अभी आगे आ रहा है)। (मिश्कात शरीफ)
तशरीहः- तौबा के असल हिस्से और अंश तो वही तीन हैं जैसे
1. जो गुनाह हो चुके उनपर शर्मिन्दगी और नदामत ।
2. आईन्दा को गुनाह न करने का पुख़्ता अहद।
3. जो अल्लाह और बन्दों के हुक़ूक़ बरबाद और ज़ाया किये हैं उनकी तलाफी करना।
और इस तरह तौबा की जाए तो ज़रूर कबूल होती है। लेकिन अगर इन बातों के साथ बाज़ और चीजें भी मिला ली जाएँ तो तौबा और ज़्यादा क़बूल होने के लायक हो जाती है- जैसे नेकियों की कसरत करने लगे यानी खूब ज़्यादा नेक काम करने लगे या किसी बड़ी नेकी का एहतिमाम ज़्यादा करे।
हदीस शरीफ में है कि एक शख़्स नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ कियाः या रसूलल्लाह ! मैंने बहुत बड़ा गुनाह कर लिया, क्या मेरी तौबा क़बूल होगी? आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमायाः क्या तेरी वालिदा मौजूद हैं? अर्ज़ किया नहीं। फ़रमायाः तेरी कोई ख़ाला? अर्ज़ किया हाँ! ख़ाला है। फरमायाः बस तुम उसके साथ अच्छा मामला और सुलूक किया करो। (तिर्मिज़ी)
इससे मालूम हुआ कि वालिदा और ख़ाला के साथ अच्छा बर्ताव और अच्छा सुलूक करने को तौबा क़बूल कराने में बहुत दखल है।
नमाज़ पढ़कर तौबा करने की जो तालीम फरमाई वह भी इसलिये है कि नमाज़ बहुत बड़ी नेकी है। अव्वल दो-चार रक्अत नमाज़ पढ़कर तौबा की जाए तो तौबा ज़्यादा कबूल होने के लायक होगी।
ऊपर की हदीस में जो आयत का कुछ हिस्सा ज़िक्र किया है, यह सूरः आलि इमरान की आयत है जिसका तर्जुमा यह हैः
तर्जुमाः और ऐसे लोग कि जब कोई ऐसा काम कर गुज़रते हैं जिसमें ज़्यादती हो, या अपनी ज़ात पर नुकसान उठाते हैं तो अल्लाह तआला को याद कर लेते हैं। फिर अपने गुनाहों की माफी चाहने लगते हैं, और अल्लाह के सिवा और है कौन जो गुनाहों को बख़्शता हो? और वे लोग अपने फेल पर इसरार नहीं करते, और वे जानते हैं। (सूरः आलि इमरान आयत 135)
उसके बाद उन हज़रात का अज्र व सवाब बयान करते हुए इरशाद फ़रमायाः तर्जुमाः उन लोगों की जज़ा यानी बदला और इनाम बख़्शिश है उनके रब की तरफ़ से। और ऐसे बाग़ हैं कि उनके नीचे से नहरें चलती होंगी। उनमें वे हमेशा-हमेशा रहने वाले होंगे, और अच्छा बदला है उन काम करने वालों का। (सूरः आलि इमरान आयत 136)
ये भी पढ़ें:हज़रत सलमान फारसी का इरशाद|Hazrat Salman Farsi ka Irshad.
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
🤲 Support Sunnat-e-Islam
Agar aapko hamara Islamic content pasand aata hai aur aap is khidmat ko support karna chahte hain,
to apni marzi se donation kar sakte hain.
Allah Ta‘ala aapko iska ajr ata farmaye. Aameen.
