एक दफा मजनूँ जा रहा था। उन दिनों हज़रत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के हक़ में हुकूमत छोड़ दी थी और हुकूमत उनके हवाले कर दी थी। हज़रत हसन रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि मैं ख़िलाफ्त से एक तरफ हो गया हूँ और मैंने हुकूमत उन्हीं को दे दी जिनको सजती थी।
जब उसने यह सुना तो कहने लगा हज़रत मेरे ख्याल में तो हुकूमत लैला को सजती है। हज़रत ने फरमाया, “तू तो मजनूँ है?” तब से उसका नाम कैस की जगह मजनूँ पड़ गया। दीवाना था बेचारा अपने बस में नहीं था।(तमन्नाए दिल स० 35)
एक बार उसके बाप ने कहा कि बेटा बहुत बदनामी हो गई। अब दुआ मांग अल्लाह लैला की मुहब्बत मेरे दिल से निकाल दीजिए, ख़त्म कर दीजिए, उसने फौरन हाथ उठाये और दुआ मांगी ऐ अल्लाह ! लैला की मुहब्बत और बढ़ा दीजिए चुनाँचे उसके वालिद एक बार उसको पकड़कर बैतुल्लाह ले गए।
कहने लगे कि बहुत बदनामी हो गई, आज मैं तुझे नहीं छोड़ुगा जब तक कि तू सच्ची तौबा न कर ले। चल तौबा कर, यह तौबा करने लगा तो उसने कहा : अल्लाह मैंने हर गुनाह से तौबा कर ली लेकिन लैला की मुहब्बत से तौबा नहीं करता।
उसके वालिद ने नाराज़ होकर कहा तू क्या कर रहा है? जब वह बहुत ज़्यादा नाराज़ हुए तो उसने मजबूर होकर हाथ उठाए और वालिद के सामने दुआ मांगने लगाः या अल्लाह उसकी मुहब्बत मेरे दिल से कभी न निकालना और अल्लाह उस बन्दे पर रहम करे जो इस दुआ पर आमीन कहे।
मुहब्बत में दीवार और कुत्ते के कदम चूमना।
एक बार मजनूँ को किसी ने देखा कि एक कुत्ते के पाँव चूम रहा है। उसने पूछ ऐ मजनूँ! तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? मजनूँ ने कहा यह कुत्ता लैला की गली से होकर आया है। मैं इसलिए इसके पाँव चूम रहा हूँ। ऐसे मस्त और अक़्ल में खराबी आए हुए इंसान को मजनूँ पागल न कहा जाए तो क्या कहा जाए। किसी फारसी शायर ने यही बात शे’र में कही है- मजनूँ लैला की गली का तवाफ किया करता था और यह शे’र पढ़ा करता था-मैं लैला के घर की दीवारों का तवाफ करता हूँ। कभी यह दीवार चूमता हूँ कभी वह दीवार घूमता हूँ। और दरअसल इन घरों की मुहब्बत मेरे दिल पर नहीं छा गई बल्कि उसकी मुहब्बत जो इन घरों में रहने वाली है।
एक दफा हाकिम शहर ने सोचा कि लैला को देखना चाहिए कि मजनूँ और उसकी मुहब्बत के अफ़साने हर एक की ज़बान पर हैं। जब सिपाहियों ने लैला को पेश किया तो हाकिम हैरान रह गया कि एक आम सी लड़की थी न शक्ल न रंग न रूप था। उसने लैला से कहा, “तू दूसरी हसीनाओं से ज़्यादा बेहतर नहीं है? कहने लगी ख़ामोश रह क्योंकि तू मजनूँ नहीं है।” (इश्के इलाही 55)
एक बादशाह ने लैला के बारे में सुना कि मजनूँ उसकी मुहब्बत में दीवाना बन चुका है। उसके दिल में ख़्याल पैदा हुआ कि मैं लैला को देखूं तो सही। जब उसने देखा तो उसका रंग काला था और शक्ल भद्दी थी। वह इतनी काली थी कि उसके माँ-बाप ने लैल (रात) जैसी (काली) होने की वजह से उसको लैला यानी काली का नाम दिया। लैला के बारे में बादशाह का ख़्याल था कि वह बड़ी नाज़नीन और परी जैसे चेहरे की होगी। मगर जब उसने लैला को देखा तो उससे कहा- “तू दूसरी औरतों से ज़्यादा खूबसूरत नहीं है?”
जब बादशाह ने यह कहा तो लैला ने जवाब में यह कहा-“ख़ामोश हो जा तेरे पास मजनूँ की आँख नहीं।”अगर मजनूँ की आँख होती तो तुझे दुनिया में मेरे जैसा खूबसूरत कोई नज़र न आता। इसी तरह मेरे से उसकी काएनात को देखेंगे तो आएगा। दोस्तो ! मुहब्बते इलाही की आँखों हर जगह जमाले खुदावंदी नज़र आयेगा।
मौलाना रोमी रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि फरमाते हैं कि एक बार उसको किसी ने देखा कि रेत की ढेर पर बैठे कुछ लिख रहा है। इस पर उन्होंने कहा : जंगल में एक आदमी ने एक बार मजनूँ को देखा कि गम के बयाबान में अकेला बैठा हुआ था। रेत को उसने कागज़ बनाया हुआ था और अपनी उंगली को कलम और किसी को ख़त लिख रहा था।हज़रत सलमान फ़ारसी रजियल्लाहु अन्हु का वाक़िआ।
उसने पूछा कि ऐ मजनूँ शैदा तू क्या लिख रहा है? तू किसके नाम यह ख़त लिख रहा है? मजनूँ ने कहा लैला के नाम की मश्क कर रहा हूँ। उसके नाम को लिखकर अपने दिल को तसल्ली दे रहा हूँ।
इससे मालूम हुआ कि जब दुनिया के महबूब का नाम लिखने और बोलने से सुकून मिलता है तो महबूबे हकीकी के ज़िक्र व नाम लेने से किस कद्र सुकून मिलेगा।(तमन्नाए दिल स० 35)
नमाज़ी को मजनूँ की तंबीह :-
एक दफा एक आदमी नमाज़ पढ़ रहा था। मजनूँ लैला की मुहब्बत में ग़र्क था। वह इसी मदहोशी में उस नमाज़ी के सामने से गुज़र गया। उस नमाज़ी ने नमाज़ पूरी करके मजनूँ को पकड़ लिया। कहने लगा तूने मेरी नमाज़ ख़राब कर दी कि मेरे सामने से गुज़र गया, तुझे इतना नज़र नहीं आया। उसने कहा कि खुदा के बंदे ! मैं मख़्लूक की मुहब्बत में गिरफ्तार हूँ मगर वह मुहब्बत इतनी हाबी हुई कि मुझे पता न चला कि मैं किसी के सामने से गुज़र रहा हूँ और तू खालिक की मुहब्बत में गिरफ़्तार है कि नमाज़ पढ़ रहा था। तुझे अपने सामने से जाने वालों का पता चल रहा था।
मुझको न अपना होश न दुनिया का होश है,
बैठा हूँ मस्त हो के तुम्हारे जमाल में।
एक ऐसा आशिक जो लैला के गली के कुत्तों के कदम चूमता था..जो रेत पर लैला का नाम लिखकर तसल्ली पाता था..जिसे दुनिया की खबर न थी, बस लैला की मुहब्बत में डूबा था।
जब मजनूँ की दीवानगी यह असर करती है तो सोचो
अगर अल्लाह से सच्ची मुहब्बत हो जाए तो दिल को क्या सुकून मिलेगा!
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…