
मेहमान के आने पर खुशी और मुहब्बत जाहिर कीजिए और बड़ी खुशदिली, खुले मन और इज्ज़त के साथ उसका इस्तेकबाल कीजिए । तंगदिली, बेरुखी, कुढ़न और घुटन को हरगिज ज्ञाहिर न कीजिए ।
हमारे नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है- “जो लोग ख़ुदा और आखिरत के दिन पर यक़ीन रखते हैं उन्हें अपने मेहमान का इज़्ज़त करना चाहिए।” (बुखारी, मुस्लिम)
एहतेराम और मेहमान नवाजी में वो तमाम शर्तें शामिल हैं जो मेहमान के इज़्ज़त और एहतेराम, राहत व आराम, सुकून व खुशी और जज़्बातों की तस्कीन के लिए हों । खुले दिल और खुले मन से पेश आना, हँसी-खुशी की बातों से दिल बहलाना, इज़्ज़त के साथ बैठने-लेटने का इन्तिज़ाम करना, अपने प्यारे दोस्तों से पहचान और भेंट कराना, उसकी जरूरतों का ख़याल करना, बड़ी खुशदिली और फ़राख़दिली के साथ खाने-पीने का इन्तिज़ाम करना और एहतेराम और मेहमान नवाजी में लगे रहना, ये सभी बातें मेहमान के एहतेराम में दाखिल हैं।
हमारे नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास जब मेहमान आते तो आप खुद ही उनकी खातिरदारी फ़रमाते ।
जब आप मेहमान को अपने दस्तरखान पर खाना खिलाते तो बार-बार फ़रमाते, “और खाइए, और खाइए।” जब मेहमान का दिल भर जाता और इनकार करता तब आप इसरार करने से रुक जाते ।
मेहमान के आने पर सबसे पहले उससे दुआ-सलाम कीजिए और खैर व आफ़ियत मालूम कीजिए । कुरआन में है-
तर्जुमा “क्या आपको इबराहीम के इज्जतदार मेहमानों की दास्तान भी पहुँची है कि जब वो उनके पास आए तो आते ही सलाम किया। इबराहीम ने जवाब में सलाम किया ।”
(कुरआन, 51:24)
दिल खोलकर मेहमान का खुश आमदीद कीजिए और जो अच्छे से अच्छा मिले, मेहमान के सामने फ़ौरन पेश कीजिए । हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम के मेहमान जब आए तो हजरत इबराहीम अलैहिस्सलाम फ़ौरन उनके खाने-पीने के इंतिज़ाम में लग गए और जो मोटा-ताजा बछड़ा उनके पास था, उसी का गोश्त भूनकर मेहमानों की खिदमत में पेश किया ।
कुरआन में है- तर्जुमा: “तो जल्दी से घर में जाकर एक मोटा-ताजा बछड़ा जबह करके भुनवा लाए और मेहमानों के सामने पेश किया।” (कुरआन, 51:26)
यहाँ जो अरबी शब्द आए हैं, उसका एक मतलब यह भी है कि वे चुपके से घर में मेहमानों के मेहमान नवाजी का इन्तिज़ाम करने चले गए, इसलिए कि मेहमानों को दिखाकर और जनाकर उनके खाने-पीने और मेहमान नवाजी की दौड़-धूप होगी तो वे शर्म और मेज़बान की तकलीफ़ की वजह से मना करेंगे और पसन्द न करेंगे कि उनकी वजह से मेज़बान किसी गैर-मामूली परेशानी में पड़े और फिर मेज़बान के लिए मौक़ा न होगा कि वह भरपूर खातिरदारी कर सके ।
नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मेहमान की खातिरदारी पर जिस अंदाज से उभारा है उसका नक़्शा खींचते हुए अबू शुरैह रजियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं- “मेरी इन दो आँखों ने देखा और इन दो कानों ने सुना, जबकि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम यह हिदायत दे रहे थे: “जो लोग ख़ुदा और आख़िरत के दिन पर यक़ीन रखते हों, उन्हें अपने मेहमानों का मेहमान नवाजी करना चाहिए । मेहमान के इनाम का मौक़ा पहली रात और दिन है।”(बुखारी, मुस्लिम)
पहली रात और दिन की मेज़बानी को इनाम कहने का मतलब यह है कि जिस तरह इनाम देनेवाला दिल की इंतिहाई खुशी और मुहब्बत की गहरी जज़्बातों के साथ इनाम देते हुए रूहानी लज्जत और खुशी महसूस करता है, ठीक यही बात पहली रात और दिन के मेजबान की होनी चाहिए। और जिस तरह इनाम लेनेवाला खुशी की जज़्बातों में डूबकर इनाम देनेवाले के एहसान की क़द्र करते हुए अपना हक़ समझकर इनाम वसूल करता है, ठीक उसी हालत को पहली रात और दिन में मेहमान को भी जाहिर करना चाहिए और बिना किसी झिझक के अपना हक़ समझते हुए खुशी और कुरबत की जज़्बातों के साथ मेजबान की तोहफा क़बूल करना चाहिए ।
मेहमान के आते ही उसकी इनसानी जरूरतों का एहसास कीजिए । ज़रूरत पूरी करने के लिए पूछिए । मुँह हाथ धोने का एहतिमाम कीजिए, जरूरत हो तो नहाने का भी इंतिज़ाम कीजिए। खाने-पीने का वक़्त न हो जब भी मालूम कर लीजिए और इस बेहतर तरीक़े से कि मेहमान तकल्लुफ़ में इनकार न करे। जिस कमरे में लेटने-बैठने और ठहराने की इन्तिजाम हो, वह मेहमान को बता दीजिए ।
हर वक़्त मेहमान के पास धरना मारे बैठे न रहिए और इसी तरह रात गए तक मेहमान को परेशान न कीजिए ताकि मेहमान को आराम करने का मौक़ा मिले और वह परेशानी महसूस न करे। हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम के पास जब मेहमान आए तो उनके खाने-पीने का इन्तिज़ाम करने के बाद मेहमान से कुछ देर के लिए अलग हो गए ।
मेहमानों के खाने-पीने पर खुशी महसूस कीजिए । तंगदिली, कुढ़न और कोफ़्त महसूस न कीजिए। मेहमान परेशानी नहीं, बल्कि रहमत और बरकत का ज़रिया होता है और ख़ुदा जिसको आपके यहाँ भेजता है उसकी रोज़ी भी उतार देता है। वह आपके दस्तरखान पर आपकी किस्मत का नहीं खाता बल्कि अपनी क़िस्मत का खाता है और आपके इज़्ज़त और शोहरत में बढ़ोत्तरी की वजह बनता है।
मेहमान की इज़्ज़त व आबरू का भी ख्याल रखिए और उसकी इज़्ज़त व आबरू को अपनी इज़्ज़त व आबरू समझिए। आपके मेहमान की इज्ज़त पर कोई हमला करे तो उसको अपनी गैरत के ख़िलाफ़ चुनौती समझिए ।
कुरआन में है कि जब लूत अलैहिस्सलाम के मेहमानों पर बस्ती के लोग बदनियती के साथ हमलावर हुए तो वे रोकने के लिए उठ खड़े हुए और कहा कि ये लोग मेरे मेहमान हैं। इनके साथ बदसलूकी करके मुझे रुसवा न करो, इनकी रुसवाई मेरी रुसवाई है ।
हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने कहा- तर्जुमा: “भाइयो ! ये मेरे मेहमान हैं, मुझे रुसवा न करो। ख़ुदा से डरो और मेरी बेइज़्ज़ती से बाज़ रहो ।”(कुरआन, 15:68-69)
तीन दिन तक बड़े शौक़ और वलवले के साथ मेज़बानी के तक़ाज़े पूरे कीजिए । तीन दिन तक की मेहमानी मेहमान का हक़ है और हक़ अदा करने में मोमिन को बड़े खुले दिल का होना चाहिए। पहला दिन ख़ास मेहमान नवाजी का है, इसलिए पहले दिन मेहमान नवाज़ी का पूरा-पूरा एहतिमाम कीजिए। बाद के दो दिनों में अगर वह गैर-मामूली एहतिमाम न रह सके तो कोई हरज नहीं ।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है-“और मेहमानदारी तीन दिन तक है। इसके बाद मेजबान जो कुछ करेगा, वह उसके लिए सदक़ा होगा ।”(बुखारी, मुस्लिम)
मेहमान की खिदमत को अपना अख़लाक़ी फ़र्ज समझिए और मेहमान को नौकरों या बच्चों के हवाले करने के बजाए खुद उनकी खिदमत और आराम के लिए कमर कसे रहिए । नबी-ए-करीम प्यारे मेहमानों की मेहमानदारी खुद फ़रमाते थे ।
हजरत इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि जब इमाम मालिक रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि के यहाँ जाकर मेहमान के तौरपर ठहरे तो इमाम मालिक रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि ने बड़ी इज्जत व एहतिराम से उन्हें एक कमरे में सुला दिया । भोर में इमाम शाफ़ई ने सुना कि किसी ने दरवाज़ा खटखटाया और बड़ी मुहब्बत से आवाज़ दी, आपपर खुदा की रहमत हो, नमाज़ का वक़्त हो गया है।
इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि तुरन्त उठे, क्या देखते हैं कि इमाम मालिक रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि हाथ में पानी का भरा हुआ लोटा लिए खड़े हैं। इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि को कुछ शर्म-सी महसूस हुई। इमाम मालिक रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि ताड़ गए और निहायत मुहब्बत से बोले, “भाई ! तुम कोई ख़याल न करो। मेहमान की ख़िदमत तो करनी ही चाहिए।”
मेहमान को ठहराने के बाद बैतुलखला यानी शौचालय बता दीजिए । पानी का लोटा दे दीजिए और क़िबले का रुख भी बता दीजिए। नमाज़ की जगह और मुसल्ला वगैरह मुहय्या कर दीजिए। इमाम मालिक रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि के खादिम ने इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि को एक कमरे में ठहराने के बाद कहा, “हज़रत ! क़िबले का रुख यह है, पानी का बरतन यहाँ रखा है, बैतुलखला इस ओर है।”
खाने के लिए जब हाथ धुलाएँ तो पहले खुद हाथ धोकर दस्तरखान पर पहुँचिए और फिर मेहमान का हाथ धुलाइए । इमाम मालिक रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि ने जब यही अमल किया तो इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि ने इसकी वजह पूछी, फ़रमाया, “खाने से पहले तो मेज़बान को पहले हाथ धोना चाहिए और दस्तरखान पर पहुँचकर मेहमान का मेहमान नवाजी करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए और खाने के बाद मेहमान का हाथ धुलवाना चाहिए और उबके बाद मेज़बान को हाथ धोना चाहिए। हो सकता है कि उठते-उठते कोई और आ पहुँचे ।”
दस्तरखान पर खाने-पीने का सामान और बरतन वगैरह मेहमानों की तादाद से कुछ ज्यादा रखिए, हो सकता है कि खाने के दौरान कोई और साहब आ जाएँ और फिर उनके लिए इन्तिज़ाम करने को दौड़ना-भागना पड़े। अगर बरतन और सामान पहले से मौजूद होगा तो आनेवाला भी हल्केपन के बजाए ख़ुशी और इज़्ज़त महसूस करेगा । मेहमान के लिए त्याग से काम लीजिए। ख़ुद तकलीफ़ उठाकर उसको आराम पहुँचाइए ।
खूबसूरत वाक़िआ:- इब्राहीम बिन अदहम और एक सेब।
एक बार नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में एक आदमी आया और बोला, “हुज़ूर ! मैं भूख से बेताब हूँ।” आपने अपनी बीवी के यहाँ कहलवाया कि खाने के लिए जो कुछ भी मौजूद हो, भेज दो।” जवाब आया, “उस ख़ुदा की क़सम जिसने आपको पैग़म्बर बनाकर भेजा है, यहाँ तो पानी के सिवा और कुछ नहीं है ।” फिर आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने दूसरी बीवी के यहाँ कहला भेजा, वहाँ से भी यही जवाब आया, यहाँ तक कि आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक-एक करके सब बीवियों के यहाँ कहलवाया और सबके यहाँ से उसी तरह का जवाब आया ।
अब नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अपने सहाबियों की ओर मुतवज्जोह हुए और फ़रमाया, “आज रात के लिए इस मेहमान को कौन क़बूल करता है ?” एक अनसारी सहाबी रजियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा, “ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम! मैं क़बूल करता हूँ।”
अनसारी मेहमान को अपने घर ले गए और घर जाकर बीवी को बताया, “मेरे साथ यह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मेहमान हैं, इनकी ख़ातिरदारी करो ।” बीवी ने कहा, “मेरे पास तो सिर्फ़ बच्चों के लायक़ खाना है।” सहाबी ने कहा, “बच्चों को किसी तरह बहलाकर सुला दो और जब मेहमान के सामने खाना रखो तो किसी बहाने से चिराग़ बुझा देना, ताकि उसको यह महसूस हो कि हम भी खाने में शरीक हैं।”
इस तरह मेहमान ने पेट भरकर खाना खाया और घरवालों ने सारी रात फ़ाक़े से गुजारी । सुबह जब यह सहाबी रजियल्लाहु तआला अन्हु नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए तो आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने देखते ही फ़रमाया, “तुम दोनों ने रात अपने मेहमान के साथ जो मेहमान नवाजी किया, वह खुदा को बहुत ही पसन्द आया ।” (बुखारी, मुस्लिम)
अगर आपके मेहमान ने कभी किसी मौके पर आपके साथ बेमुरव्वती और रूखेपन का बर्ताव किया हो तब भी आप उसके साथ बड़े खुले दिल का बर्ताव कीजिए ।
हजरत अबुल अहवस जश्मी रजियल्लाहु तआला अन्हु अपने बाप के बारे में बयान करते हैं कि एक बार उन्होंने नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से पूछा-
“अगर किसी के पास मेरा गुजर हो और वह मेरी मेहमानी का हक़ अदा न करे और फिर कुछ दिनों के बाद उसका गुज़र मेरे पास हो तो क्या मैं उसकी मेहमानी का हक़ अदा करूँ? या उस की बेमुरव्वती और बेरुखी का बदला उसे चखाऊँ ?
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया,”नहीं, बल्कि तुम उसकी मेहमानी का हक़ अदा करो।” (मिश्कात)
मेहमान से अपने हक़ में खैर व बरकत की दुआ के लिए दरखास्त कीजिए, ख़ास तौर से अगर मेहमान नेक, दीनदार और बुजुर्ग हो । हज़रत अब्दुल्लाह बिन बिस्र रजियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरे बाप के यहाँ मेहमान ठहरे । हमने आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सामने हरीसा पेश किया । आपने थोड़ा-सा खाया, फिर हमने खजूरें पेश कीं ।
आप खजूरें खाते थे और गुठलियाँ शहादत की उँगली और बीच की उँगली में पकड़-पकड़कर फेंकते जाते थे, फिर पीने के लिए कुछ पेश किया गया । आपने पी लिया और अपने दाईं तरफ़ बैठनेवाले के आगे बढ़ा दिया । जब आप तशरीफ़ ले जाने लगे तो वालिद साहब ने आपकी सवारी की लगाम पकड़ ली और दरखास्त की कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हमारे लिए दुआ फ़रमाएँ।
और नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने यह दुआ फ़रमाई । अल्लाहुम-म बारिक लहुम फ़ीमा र-ज़क्र-तहुम वग्फ़िर लहुम वरहमहुम ।
“ऐ अल्लाह ! तूने इनको जो रोज़ी दी है उसमें बरकत फ़रमा, इनकी मग़फ़िरत फ़रमा और इनपर रहम कर ।”(तिरमिज़ी)
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..