एक बच्ची ने ख़त लिखकर किसी मुल्क में से फतवा पूछा कि मैं किसी के साथ गुनाह में मुलव्वस (लिप्त) होती थी और मेरी अम्मी को पता चल गया और उसने मुझे एक बार सख़्त डाँटा और कहा तूने ऐसी हरकत क्यों की?
मैंने उसको यकीन दिलाने के लिए कसम खायी लेकिन उसने कहा कि मैं तुम्हारी कसम पर भी एतिबार नहीं करती। आख़िरकार बच्ची ने यहाँ तक कह दिया कि अगर मेरे उसके साथ ताल्लुकात हों तो मुझे मरते वक़्त कलिमा नसीब न हो।
अब माँ के सामने तो शर्मिन्दगी से वक़्ती तौर पर अपने आपको बचा लिया। बाद मैं उसको एहसास हुआ कि मेरा हश्र क्या होगा। उस बच्ची ने ख़त लिखा, हज़रत ! मुझे मसला समझायें।
मैं न दीन की रही न दुनिया की रही, अब मेरा अन्जाम क्या होगा। यह सब किस लिए हुआ कि उसने एक गलत रास्ते पर कदम उठाया। अन्जाम ईमान की तबाही निकला।
तो जब ऐ रास्ता है ही ख़तरनाक तो क्यों इनसान उसमें कदम उठाए। अगर आपके सामने एक सौ टाफ़ियाँ रख दी जायें और यह कह दिया जाए कि इनमें से एक में ज़हर है बाकी निन्नानवे ठीक हैं। आप खा लीजिए। आप एक को भी हाथ नहीं लगायेंगी। क्यों? आप कहेंगी मेरी जान का ख़तरा है।
ऐ बेटी! तुझे जान का ख़तरा है तू एक फीसद भी रिस्क नहीं लेना चाहती, उन सौ टाफियों में से एक भी नहीं लेना चाहती, जहाँ तेरी इज़्ज़त का ख़तरा हो वहाँ तू क्यों रिस्क लेती (ख़तरा उठाती) है? क्यों और कदम आगे बढ़ाती है?
खूबसूरत वाक़िआ: एक औरत और ज़िन्दगी का सच
वहाँ भी तो हमें सौ फीसद मोहतात (एहतियात करने वाली) रहना चाहिए ताकि हमारी इज़्ज़त की हिफाज़त रहे।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
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