
सालिहीन बयान करते हैं कि एक सालिह ने बयान किया कि एक मर्द सालिह अजम का रहने वाला मेरा दोस्त था और मक्का मोकर्रमा में रहा करता था और तवील रात तक ख़ाना काबा का तवाफ किया करता और बैठ कर तिलावत कुरआन करीम करता था इस हाल में कई वर्ष गुज़र गये तो मैंने कुछ सोना उसे अमानत में दिया और यमन की तरफ सफ को चला गया जब वापिस आया तो मालूम हुआ कि उनका फौत हो गया है।
मैंने उसकी औलाद से अमानत के बारे में पूछा उन्होंने मुझसे कहा खुदा ‘की क़सम तुम जो कहते हो हमें कुछ भी मालूम नहीं और ना हमें इसका कुछ इल्म है तो मैं ग़मज़दा होकर बैठ गया हज़रत मालिक इब्ने दीनार रहमतुल्लाहि अलैहि मुझसे मिले। उन्होंने मुझसे पूछा क्या बात है ऐ भाई। क्यों फिक्र मन्द हो? मैंने उन्हें सारा हाल बयान किया। उन्होंने फरमाया जब आधी रात हो जाय और वह रात जुमा की हो और मुत्ताफ में कोई शख़्स बाक़ी ना रहे तो रूक्न और मक़ाम के दरम्यान खड़े होकर बुलन्द आवाज़ से पुकारना ऐ फलां !
अब अगर अल्लाह के नज़दीक वह शख़्स सालिह और मक़बूल है तो उसकी रूह तुमसे बात करेगी इसलिये कि तमाम मुसलमानों की रूहें रूक्न और मक़ाम के दरमियान इस रात को जमा होती हैं। वह बुजुर्ग बयान करते हैं कि जब जुमा की रात आई तो आधी रात के बाद मैं रूक़्न व मक़ाम के दरमियान खड़ा हुआ और ज़ोर से पुकारा ऐ फलां ! तो मुझे किसी ने जवाब ना दिया।
फिर जब सुबह हुई तो मैं हज़रत मालिक बिन दीनार रहमतुल्लाहि अलैहि से यह बयान किया। उन्होंने सुनकर कहा “इन्नालिल्लाहि व इन्नाएलेहिराजेउन” वह अज़मी अहले नार से होगा। अब तुम सर ज़मीन यमन जाओ वहाँ एक कुआँ है जिसका नाम “बरहूत” है उसमें मोअज्ज़बीन की रूहें जमा की जाती है और वह कुआँ जहन्नम के मुँह पर है। तो तुम उस कुएँ के गोशे पर खड़े होकर आधी रात के वक़्त पुकारना ऐ फ्लां! तो वह तुम से बात करेगा।
वह बयान करते हैं कि फिर मैं उस कुएँ की तरफ गया जब आधी रात हुई तो मैं कुएँ के पास गया अचानक मैंने देखा कि दो शख़्सों को लाया गया है और उन दोनों को कुएँ में उतारा गया है और वह रोते हुए एक दूसरे से पूछते हैं तू कौन है, एक कहता है फलां ज़ालिम की रूह हूँ मैं बादशाह का पहरा दिया करता था और हराम खाता था और मलकुल मौत ने मुझे इस कुएँ में फेंक दिया जिसमें मुझे अज़ाब दिया जाता है और दूसरे ने कहा मैं अब्दुल मलिक बिन मरवान की रूह हूँ मैंने इन दोनों के चीख़ने और चिल्लाने की आवाजें सुनीं और शिद्दते ख़ौफ से मेरे जिस्म के तमाम रोंगटे खड़े हो गये।
वह बयान करते हैं फिर मैंने उस कुएँ में नज़र डाली और ज़ोर से पुकारा हे फलाँ ! तो उसने मुझे ज़र्ब व अकूबत के नीचे से जवाब दिया। लब्बैक (मैं मौजूद हूँ) मैंने कहा ऐ भाई मेरी वह अमानत कहाँ है जो मैंने तुम्हारे सुपुर्द की थी? उसने कहा वह अमानत फ़्लाँ फलां जगह फ़्लॉ चौखट के नीचे मदफून है मैंने पूछा ऐ भाई किस गुनाह में इस बदबख़्तों के मक़ाम में लाये गये हो? उसने कहा अपनी बहन के सबब से क्यों कि मेरी एक बहन थी वह मोहताज थी और मुझसे दूर सर ज़मीन अज़म में रहती थी में उससे बेनयाज़ होकर अल्लाह की इबादत और मक्का मोकर्रमा की हाज़री में मुन्हमिक हो गया और इतने अरसा तक न मैंने उसके खाने पीने की फिक्र की और न उसकी कुछ पूछ गछ की।
फिर जब में मर गया तो इस कितआ रहमी पर मेरे रब ने मुझ पर अताब फरमाया और उसने मुझसे पूछा “तू कैसे इसे भूल गया वह बरहना रही, तू कपड़े पहनता रहा, वह भूकी रही, तू पेट भर कर खाता रहा वह प्यासी रही और तू सैराव रहाँ क़सम है मुझे अपने इज़्ज़ोजलाल की मैं क़ातिअ रहम पर रहम नहीं करूंगा। ले जाओ इसे और बरहूत के कुएँ में डाल दो।” तो मलकुल मौत मुझे यहाँ ले आये ऐ भाई तुम मेरी बहन के पास जाओ और मुझे माफ करने की उससे दरखास्त करो और इस अज़ाब से छुटकारे की तदबीर करो मुम्किन है कि अल्लाह अज़वजल मुझ पर रहम फरमाये।
खूबसूरत वाक़िआ:-फितने की शुरुआत कैसे होती है?
इसलिये कि अल्लाह तआला की जनाब में कितआ रहमी और इस पर जुल्म करने के सिवा मेरा कोई गुनाह नहीं है। वह बुजुर्ग बयान करते हैं इसके बाद मैं उस जगह पहुंचा जहाँ उसने अमानत को दफन बताया था और मैंने खोदा और थैली मौजूद पाई जिसमें मेरी अमानत थी और वह वैसी ही बंधी हुई थी जैसे मैंने उसे बांध कर दी थी मैं उसे लेकर अजम की शहरों की तरफ रवाना हुआ और उसकी बहन की बाबत दरियाफ़्त किया और वह मुझे मिली मैंने उसे अव्वल ता आख़िर सब माजरा बयान किया वह सुनकर रोने लगी और मैंने उसके भाई के छुटकारे में उससे कहा तो वह अल्लाह की जनाब में कलफ और हाजत की शिकायत करने लगी इस पर मैंने कुछ दुनियावी माल उसे दे दिया और मैं उसके पास से चला आया। लिहाज़ा हर मोमिन को ज़रूरी है कि वह सिलह रहमी करे।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….