रूखेपन से बात करना। जो औरत रूखेपन से गैर-मर्द से बात करेगी उस मर्द को जुर्रत ही नहीं होगी कि वह एक बात से दूसरी बात कह सके। और अगर बात करते हुए सारी दुनिया की मिठास ज़बान में सिमट आएगी और प्यार मुहब्बत के अन्दाज़ में नर्म बातें की जायेंगी तो कुरआन मजीद ने फैसला दे दिया कि ऐसा न हो कि वह आदमी अपने दिल में लालच कर बैठे जिसके दिल में बीमारी हो।
मर्दों के दिलों में शहवत और मर्ज़ तो होता ही है। ज़रा किसी ने नर्म बात की आवाज़ पसन्द आ गई, लहजा पसन्द आ गया। और कुछ भी नहीं तो मर्द के ज़ेहन में इतना ख़्याल आ गया कि यह औरत खुद बात करने का मौका दे रही है तो मर्द खुद आगे कदम बढ़ाएगा।
इसलिए कि उसको तो मौके की तलाश होती है। मैंने तो पहले अर्ज किया कि सबके सब मर्द मौका परस्त होते हैं, इल्ला माशा-अल्लाह। अल्लाह जिसकी हिफाज़त करे। जिसके दिल में औलिया का नूर हो, बस वह है कि जो इस फितने से बचता है। वरना इस मामले में सबके सब मर्द एक जैसे होते हैं।
तो शरीअत ने कहा कि जब बात करने का मौका मिले तो आप बात ही ज़रा रूखे अन्दाज़ से कीजिए। कई बार बच्चियों के ज़ेहन में यह बात आती है और वे एक दूसरे से बातें करती हैं कि बस मैं तो ज़रा फोन पर बात कर लेती हूँ मैंने तो कभी उसे देखा भी नहीं। यह बहुत बड़ा शैतान का फन्दा है। जब आप किसी से बात करने पर आमादा हुईं तो फिर अगले काम सब आसान हो जायेंगे।
देखिए तमाम अम्बिया में से किसी ने यह दुआ नहीं माँगी कि ऐ अल्लाह ! मैं अपको देखना चाहता हूँ। मैं आप से मुलाकात करना चाहता हूँ। सिर्फ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ऐसे हैं कि जिनके बारे में कुरआन पाक में यह फरमाया कि ऐ अल्लाह ! मैं आपका दीदार करना चाहता हूँ।
मुफस्सिरीन ने इसकी वजह लिखी कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम कलीमुल्लाह थे, उनको अल्लाह तआला से हम-कलामी (बातचीत) का मौका मिलता था। और यह दस्तूर है कि जब किसी को हम-कलामी का मौका मिलेगा तो अगला कदम होगा कि एक दूसरे को देखने को दिल करेगा।
तो कुरआन से यह बात साबित हो रही है कि अगर आपने फोन पर बात करने की इजाज़त दे दी तो अगला कदम फिर मुलाकात का होगा। और जब मुलाकात होती है तो फिर हिजाबात पर्दे और झिझक सबके सब हट जाया करते हैं।
फिर सब हिजाब उतर जाते हैं और इनसान को एहसास ही नहीं होता। पता तब चलता है जब गुनाह हो चुका होता हैं। इसलिए इसको शुरू से ही रोकिये।
और यह ज़ेहन में सोचना कि फलाँ की शक्ल ऐसी है फलाँ की शख़्सियत (personality) में बड़ी कशिश (Grace) है। इन्तिहाई बेवकूफी की बात है। इसलिए कि जब अल्लाह तआला ने इनसान के मुकद्दर में यह चीज़ लिख दी कि उसको जवान होना है, फिर उसकी. शादी होनी है, तो इनसान अपने वक़्त का इन्तिज़ार करे।
खूबसूरत वाक़िआ:-नज़र की हिफाज़त ही इमान की निशानी है|
हर चीज़ अपने वक़्त पर अच्छी लगती है। जो इनसान वक़्त से पहले गुनाहों के ज़रिये अपनी ज़रूरतें पूरी करने लगता है फिर उसकी ज़िन्दगी के अन्दर परेशानियाँ आती हैं। कोई आदमी आप दुनिया के अन्दर ऐसा नहीं दिखा सकते कि जिसने ज़िना वाले गुनाह को अपनाया हो और खुशियों भरी ज़िन्दगी गुज़ारी हो। बल्कि यह अगर किसी से बात करने भी लगती हैं तो हज़ार ख़तरे, बहन से छुपाओ, अम्मी से छुपाओ, भाई से छुपाओ, अब्बू से छुपाओ किसी को पता न चलने पाए।
एक गुनाह क्या किया हर वक़्त की मुसीबत ख़रीद ली। अब उस गुनाह को छुपाने के लिए उनको कदम-कदम पर झूठ बोलने पड़ते हैं। बहाने बनाने पड़ते हैं। बात-चीत का मौका निकालने के लिए यह झूठ और गलत बयानी के ज़रिये मौका पैदा करती हैं, किया तो एक गुनाह है लेकिन उसने सैकड़ों गुनाहों के रास्ते खोल दिये। और कई बार तो झूठी कसमें खायी जाती हैं अपने ऐबों को छुपाने के लिए।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….