
गुस्सा इन्सान का सबसे बड़ा दुश्मन है और जो दुश्मन को दोस्त बनायेगा तो वो उससे सिर्फ नुकसान उठायेगा बाज़ औकात तो गुस्से की वजह से इन्सान को बड़े-बड़े नुकसान उठाने पड़ते हैं जो उसके लिये बहुत बड़ी परेशानी का सबब होते हैं फिर उसके पास सिवाये पछताबे के कोई चारा नहीं होता और इस गुस्से के बाइस इन्सान को दुन्यावी नुकसान के साथ ही साथ आखिरत का भी नुकसान होता है।
रहमते दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया- गुस्सा ईमान को इस तरह ख़राब कर देता है जिस तरह एलवा यानी कड़वा फल शहद को ख़राब कर देता है। (कंजुल उम्माल-3/140)
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जो शख़्स गुस्सा करता है वो जहन्नुम के किनारे जा लगता है। (दुर्रे मन्सूर-4/99)
सरवरे कौनेन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशादे गिरामी है जो शख़्स अपने गुस्से को रोकता है तो अल्लाह तआला उससे अपने गज़ब को रोक देता है।
गुस्सा इन्सान की अक्ल को खा जाता है और जब इन्सान में अक़्ल नहीं रहती है तो उसमें सोचने समझने की ताक़त नहीं रहती फिर वो ऐसे काम करता है जिसमें उसे सिर्फ़ नुकसान उठाना पड़ता है और बाज़ औकात गुस्से के सबब इन्सान से बड़े-बड़े गुनाह सरज़द हो जाते हैं जिनका अंजाम बहुत बुरा और तकलीफ़ ज़दा होता है जो इन्सान को भुगतना पड़ता है और कुछ गुनाहों के सबब आखिरत में अज़ाब की शक्ल में कई तरह की मुसीबतो परेशानी से इन्सान को दो चार होना पड़ेगा गुस्सा इन्सान के नफ़्स की तरफ से है और शैतान का बेहतर हथियार है जो इन्सान को गुनाहों की तरफ माइल करता है।
और जो शख़्स अपने नफ़्स पर काबू कर लेता है तो वही शख़्स गुस्से को भी काबू करने में कामयाब होता है और उस पर ग़ालिब आ जाता है और जो शख़्स अपने गुस्से को काबू रखते हुये उसे पी जाता है और जो ऐसा अल्लाह तआला की रज़ा के लिये करता है तो अल्लाह तआला उस शख़्स को बेहतर अज्र (इनाम) अता फरमाता है और उसके दिल को ईमान से भर देता है।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया- जो शख़्स गुस्से को पी जाता है अल्लाह तआला क़यामत के दिन उस शख़्स को ये इख़्तियार देगा कि वो जिस हूर को चाहे पसन्द करे। (मुस्नद अहमद-3/440)
सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया-अल्लाह तआला को उस घूँट से ज़्यादा कोई घूँट पसन्द नहीं जिसे कोई बन्दा पी लेता है तो अल्लाह तआला उसके दिल को ईमान से भर देता है। (कंजुल उम्माल-15/873)
अल्लाह तआला रहीमो करीम है जो अपने बन्दों की भलाई चाहता है इसलिये अपने बन्दों से फरमाता है कि गुस्सा तुम्हारे लिये बेहतर नहीं है इसलिये इसे काबू में रखो और मेरी रज़ा के लिये इसे पी जाया करो ताकि तुम्हें किसी तरह का नुकसान न उठाना पड़े और तुम हर परेशानी से महफूज़ रहो और जो लोग अल्लाह तआला की रज़ा के लिये अपने गुस्से पर ग़ालिब रहते और उसे पी जाते हैं तो अल्लाह तआला उन लोगों को अपना खास और मुर्काब बन्दा बना लेता है और उनकी दुनियाँ व आखिरत दोनो बेहतर हो जाती हैं।
कुरान मजीद में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है- और गुस्सा पीने वाले और लोगों को माफ करने वाले और नेक लोग अल्लाह तआला के महबूब हैं। (सू० आले इमरान-134)
सरवरे कायनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया-कोई बन्दा उस घूँट से ज़्यादा अज्र (सवाब) वाला घूँट नहीं पीता जो वो अल्लाह तआला की रज़ा के लिये गुस्से का घूँट पीता है।(सुनन इब्ने माजा-319)
हज़रत इब्ने उमर रजियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो शख़्स अपनी जुबान को रोके तो अल्लाह तआला उसकी पर्दा पोशी करता है और जो शख़्स अपने गुस्से को रोके और उसे काबू में रखे तो अल्लाह तआला उसे अज़ाब से महफूज़ रखेगा और जो शख़्स अल्लाह तआला की बारगाह में उज़र पेश करे यानी तौबा करे तो अल्लाह तआला उसकी माअज़रत को कुबूल फरमाता है।(अत्तरगीब वत्तरहीब-3/525)
खूबसूरत वाक़िआ:-हज़रत जुल-कफिल का अजीब क़िस्सा।
इमाम गज़ाली रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि फरमाते हैं नफ़्स अम्माराह बहुत सरकश जिद्दी और बदफितरत शैः है और इसकी शरारतों से बचना बहुत ज़रुरी है क्योंकि ये निहायत नुकसान देने वाला दुश्मन है और इसकी आफ्तें निहायत सख़्त हैं और इसका इलाज बहुत मुश्किल काम है इसकी बीमारी निहायत ख़तरनाक बीमारी है और इसकी दवा सब दवाओं से ज़्यादा दुशवार है और नफ़्स घर का चोर है और चोर जब घर में ही छुपा हो तो उससे महफूज़ रहना मुश्किल होता है और वो ज़्यादा नुकसान पहुँचाता है और ये एक महबूब दुश्मन है जब इन्सान को किसी से मुहब्बत होती है तो उसे उसके ऐब नज़र नहीं आते बल्कि मुहब्बत की वजह से महबूब के ऐबों से अन्धा रहता है क्योंकि मुहब्बत वाली आँख हर ऐब से अन्धी होती है अगर इस नफ़्स को बहुत ज़लील व ख़्वार रखा जाये तो इस पर लगाम लगाई जा सकती है और इसे काबू किया जा सकता है।
हज़रत अबू हुरैरा रजियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया-जबरदस्त वो नहीं जो कुश्ती लड़ने में अपने मुकाबिल यानी सामने वाले को पछाड़ दे बल्कि जबरदस्त वो है जो गुस्से के वक़्त अपने आप को काबू में रखे। (बुखारी शरीफ )
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….