
मिस्र के शरीफ घर की औरतों ने जब जुलैखा को हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की मुहब्बत पर मलामत की और ताना दिया तो जुलैखा ने उन औरतों को बुलाया, उन के लिये दस्तर ख़्वान बिछवाया जिस पर तरह तरह के खाने और मेवे चुने गए फिर जुलैखा ने हर औरत को फल वगैरा काटने के लिये एक-एक छुरी दी और हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया आप इन औरतों के सामने आ जाएं।
जब आप तशरीफ लाए और औरतों ने उनके जमाले जहां आरा को देखा तो उन के हुस्न ने औरतों पर इतना असर किया कि बजाए लीमू के उन्हों ने अपने-अपने हाथों को काट लिया और खून बहने लगा मगर उन लोगों को हाथों के कटने का एहसास नहीं हुआ इसी लिये उन्हों ने यह नहीं कहा कि हाए! हम तो अपने हाथ काट लिये बल्कि यह कहा कि ये इन्सान नहीं फरिश्ता है (सूरए यूसुफ पाराः 12, रुकूः14)
और जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के हुस्न का औरतों पर ऐसा असर हुआ कि उन को हाथ कटने की तकलीफ़ का ऐहसास नहीं हुआ तो जनाब अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिन का चेहरए अक़्दस ऐसा रौशन व ताबनाक था कि बकौल रावियाने हदीस आप के चेहरे में चांद व सूरज तैरते थे।
खूबसूरत वाक़िआ:- इस्लाम की रौशनी में मेहमान नवाज़ी के आदाब।
जिस पर उन के हुस्नो-जमाल का असर होता है और उन की मुहब्बत का गुलबा होता है उस का सर भी कट जाता है मगर उसे ऐहसास नहीं होता।
हुस्ने यूसुफ पे कटें मिस्र में अंगुश्ते ज़नां,
सर कंटाते हैं तेरे नाम पे मर्दाने अरब।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..