22/06/2025
शहीद और ऐहसासे ज़ख़्म। 20250613 185237 0000

शहीद और ऐहसासे ज़ख़्म।Shaheed aur ehsase jakham.

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Shaheed aur ehsase jakham.
Shaheed aur ehsase jakham.

मैदाने जंग में शहीद हर तरह से ज़ख़्मी होता है कभी हाथ कटता है, कभी पांव घायल होता है, कभी उस के सीने में नेज़ा दाखिल किया जाता है, खून का फव्वारा जारी होता है, कभी गर्दन कट के अलग हो जाती है और शहीद खून में नहा कर ज़मीन पर गिर जाता है जिस से बज़ाहिर यह मालूम होता है कि उस को सख़्त तक्लीफ़ व अज़िय्यत होती है लेकिन हक़ीक़त यह है कि उस को बहुत मामूली सी तक्लीफ़ होती है और उसे उन ज़ख़्मों का पूरा ऐहसास नहीं होता।

मुख्बिरे सादिक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इरशाद फरमाते हैं: शहीद कत्ल की सिर्फ इतनी ही तुम चुटकी भरने या चींवटी के काटने की तक्लीफ महसूस करते हो। (तिर्मिज़ी, मिश्कातः 33)

मुमुम्किन है कोई कहे कि यह कैसे हो सकता है कि शहीद के हाथ पांव काट दिये गए और उसकी गर्दन भी जुदा कर दी गई मगर उसको सिर्फ इतनी तकलीफ़ हुई जितनी चींवटी काटने या चुटकी भरने से होती है। तो इस शुब्हा का जवाब यह है कि शहीद से वह शहीदे हक मुराद है जिस के दिल में अल्लाह और उस के रसूल की मुहब्बत इस दर्जा पैदा हो गई हो कि उस का दिल चाहता है कि एक नहीं बल्कि करोड़ों जानें हों तो मैं सब को अपने महबूब पर कुर्बान कर दूं।

खूबसूरत वाक़िआ :-  बेमिस्ल शहादत।

आला हज़रत अज़ीमुल बरकत रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं: करूं तेरे नाम पे जां फिदा न बस एक जां दो जहां, फिदा दो जहां से भी नहीं जी भरा करूं क्या करोड़ों जहां नहीं

जैसे डॉक्टर मरीज़ को दवा सुंघा देता है फिर उस के जिस्म को चीरता और फाड़ता है, हड्डियां तोड़ता है और टांके लगाता है मगर चूंकि दवा का असर उस पर ग़ालिब होता है इस लिये मरीज़ को कोई तकलीफ नहीं महसूस होती। बिल्कुल इसी तरह वह शहीदे हक़ कि जिस के दिल में अल्लाह व रसूल की मुहब्बत ग़ालिब हो गई तो उस का जिस्म कटता है, हड्डियां टूटती हैं, खून बहता है और गर्दन जुदा होती है मगर उसे तकलीफ़ का ऐहसास नहीं होता।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..

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