क़ब्र :-
कब्र अमूमन उस जगह को कहा जाता है जहाँ मौत के बाद ज़मीन को खोद कर मैय्यत को दफ़न किया जाता है। ज़मीन खोद कर मुर्दे को दफ़न करने का रिवाज आगाज़ ईन्सानियत ही से हो गया था।
मुर्दे को बाइज़्ज़त तौर पर ज़मीन खोद कर इसके सुपुर्द कर देना ही सबसे आला तरीक़ा है। क़ब्र के इस तरीक़े को इस्लामी तरीक़ाए दफ़न कहा जाता है। इस्लाम के अलावा बाज़ क़ौमें ऐसी भी हैं जो मुर्दों को दफ़न नहीं करती बल्कि मुर्दों को आग में जलाकर राख को दरयाओं में बहा देती हैं बाज़ क़ौमें मुर्दों को बुलन्द मुक़ाम पर रख देती हैं जहाँ से परिन्दे और दिगर जानवर मुर्दे के जिस्म को खा जाते हैं।
इसी तरह बाज़ क़ौमे अपने मुर्दे को दरियाओं में व समुंद्रों में बहा देती हैं। ग़रज़े कि गैर इस्लामी मज़हब में मुर्दे को दफ़न करने कि बजाय उसके जिस्म को किसी न किसी तरह ख़त्म कर दिया जाता है। मौत के बाद मुर्दे के जिस्म को ख़वाह क़ब्र बनाकर दफ़न कर दिया जाय या किसी और तरह से बर्बाद कर दिया जाय उसे क़ब्र ही कहा जायगा।
क़ब्र क्या है :-
कुरआन व हदीस की रू से क़ब्र की ज़िन्दगी मौत से लेकर क़यामत तक है हर इंसान का वास्ता इससे पड़के रहेगा। मुर्दा ख़्वाह मिटटी के तूदे के नीचे क़ब्र की सूरत में हो या ज़र्रों की सूरत में इसका जिस्म हवा में बिखेर दिया गया हो या किसी दरिन्दे के पेट में चला गया हो या पानी में गल गया हो वह क़ब्र ही में है।
क़ब्र की राहत या अज़ाब इसे हर सूरत में मिलेगा गोया क़ब्र से मुराद वह आलम है जिसमें इंसान मौत के बाद दाखिल होता है। क्योंकि अल्लाह तआला ने इसके लिये अपने कलाम में क़ब्र का लफ़्ज़ इस्तेमाल किया है। (व अन्नल्लाह यबअसो मन फ़िलक़बूर) और बेशक अल्लाह उनको क़बरों से उठाएगा। इससे मालूम हुआ कि क़यामत के रोज़ अल्लाह तआला हर इंसान को जिस मुकाम से भी उठाएगा उससे मुराद क़ब्र है।
यानी मौत के बाद इंसान क़ब्र ही की ज़िन्दगी में दाखिल हो जाता है चाहे इसकी ज़ाहिरी कैफियत कुछ ही क्यों न हो शरई लिहाज़ से क़ब्र के आलम को आलमे बरज़ख़ कहा जाता है।Qabar ki Fazilat.
क़ब्र पुकारती है कि ऐ अल्लाह के बन्दों, मैं क़ब्र वोह हूँ कि जिसमें हर किसी को आना है याद रख कोई भी मुझ से बच न सका सिकन्दर व दारा मुझी में आए मैंने जिम व रूस्तम का निशान ना छोड़ा दुनिया के बड़े बड़े बादशाह मर के मुझी में पेवस्त हुए मुझमें ऐसे सोये कि कोई उन्हें जगा ना सका।
क़ब्र कहती है कि ऐ दुनिया वालों मैं वह मुकाम हूँ जहाँ पे आके कोई लौट नहीं सकता जहाँ तारीकी ही तारीकी है जहाँ तेरे अमल की रौशन शमा काम आ सकती है। हाय तेरा अमल अगर अच्छा ना हुआ फिर तू ही सोच ले तेरा अंजाम क्या होगा ऐ मेरे दोस्त आख़िरत के मुकाम को मत भूल क्योंकि क़ब्र तुझे भूले हुए नहीं है कभी ना कभी तेरा गुज़र इसके क़रीब से ज़रूर होता है इसे देख कर मौत याद आये बगैर रह नहीं सकती फिर ऐ नादान इसका सामान पैदा कर लिहाज़ा आज के करने वाले नेक अमल कल पर ना छोड़। इस्लाम में औरत और पर्दे का हुक्म।
आलमे बरज़ख़ का ज़माना क़ब्र ही हैः-
मौत की बिना पर इंसानी ज़िन्दगी आख़िरत की ज़िन्दगी में दाखिल हो जाती है। इसका नाम बरज़ख़ है गोया दुनियावी ज़िन्दगी के खात्मा के साथ ही बरज़ख़ी ज़िन्दगी का आगाज़ हो जाता है जो क़यामत तक रहेगी क़यामत के दिन इंसान की हयाते आख़िरत की दूसरी और हक़ीक़ी मंजिल का आगाज़ होगा जो हमेशा हमेशा के लिये होगी इसके बाद इंसान को कभी मौत की लज़्ज़त नहीं चखनी पड़ेगी।
बरज़ख के लगवी मानी दो चीज़ों के दरमियान का परदा है गोया इंसान की हयात दुनियावी के ख़ातमा (मौत) और हयाते अब्दी (क़यामत के शुरू होने वाली ज़िन्दगी) के दरम्यान जो मुकाम हाईल है उसका नाम बरज़ख है उसको हयात दुनियावी और हयात अब्दी की दरम्यानी मंज़िल एक ही बात है।
कुरआन करीम में बरज़ख़ की हक़ीक़त यों बयान की गई है। (वमिंऊवरायेहिम बरज़खुन ईला यौमी युब असून) और उन (मरने वालों) के पीछे एक परदा है उस दिन तक जबकि (वह क़यामत में) उठाए जायेंगे। (मोमिनून – 6)
सूरह मोमिनून के अलावा बरज़ख़ का लफ़्ज़ कुरआन हकीम में दो जगह और आया है। सूरह रहमान में सूरह फुरकान में वहाँ भी यह दरमियान के परदा के मफहूम में इस्तेमाल हुआ है सूरह रहमान में इरशाद हुआ है (बैईन हुमा बरज़खुल यब गियान) इन दोनों के दरम्यान एक परदह हैं जिसमें एक दूसरे पर बढ़ नहीं जाती। इन आयात से मालूम हुआ कि दुनिया और आख़िरत के दरमियान वह आलमे बरज़ख कहलाता है जिसमें मरने के बाद से क़यामत तक आदमी रहता है।
अल्लाह तआला ने अपनी कुदरते कामिला और हिकमते बालेगा से आदम अलैहिस्सलाम को मिटटी से पैदा किया और तमाम चीज़ों के नाम उनको सिखाये मस्जूदे मलायक बनाया और बहिश्त को उनका मसकन बनाया फिर उनकी मंशाये तख़्लीक़ को पूरा करने के लिये उनको ज़मीन पर उतारा इस तरह उनके लिये पहला घर जन्नत और दूसरा घर दुनिया तीसरा घर बरज़ख़ चौथा जन्नत या दोज़ख मोक़र्रर किया हर घर के लिये मुनासिब एहकाम कायम फरमाए और औलाद आदम के लिये अव्वल घर माँ का पेट दूसरा दुनिया तीसरा घर बरज़ख़ चौथा जन्नत या दोज़ख़ मोकर्रर किया हर घर के लिये मुनासिब एहकाम मोअईयन फरमाये दुनिया को दारे अमल और मज़रऐ आख़िरत क़रार दिया पसन्दीदा और गैर पसन्दीदा आमाल की तालीम के लिये अंबिया अलैहुमुस्सलाम को मबउस फरमाकर इंसान पर अज़ीम अहसान फरमाया सब अंबिया की नबुव्वत और उनकी तालीम को हक़ मानने वाले मोमनीन और इनकार करने वाले काफिर हुए मौत से क़यामत तक का ज़माना बरज़ख कहलाता है इसमें मोमिन राहत में और काफिर तकलीफ़ में रहता है।
क़ब्र के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का फरमान :-
नेक और बुरे के लिये क़ब्र की कैफियत अलग-अलग है नेकों ज़ाहिदों आबिदों अल्लाह के दोस्तों और सच्चों के लिये क़ब्र की ज़िन्दगी मिस्ल जन्नत है जबकि बुरे और गुनहगारों के लिये क़ब्र जहन्नम के गडढ़ों में से एक गडढा की मानिंद है जहाँ वहशत ही वहशत होगी और जिस्म को तक्लीफ देने वाली चीजें होंगी इसके बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की हदीस पाक यह है।
तर्जुमा, हज़रत अबू हुरैरह रजियल्लाहु अन्हो से रिवायत है कि एक मर्तबा हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के हमराह एक जनाज़ा में शरीक हुए थे। आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम क़ब्र के पास तशरीफ फरमा हुए और इरशाद फरमाया कि क़ब्र हर रोज़ हैबतनाक कराहने वाली आवाज़ में पुकारती है कि ऐ आदम के बेटे क्या तूने मुझे भुला दिया था क्या तुझे मालूम नहीं कि मैं गोशा-ए-तनहाई हूँ और मुसाफिरों का ठिकाना हूँ और वहशत का घर हूँ और हशरातुल अर्ज का मस्कन हूँ और निहायत ही तंग हूँ मगर जिसके लिये अल्लाह मुझे फराख कर दे फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि क़ब्र या तो जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ है या जहन्नम के गड्ढ़ों में से एक गडढ़ा। (तरगीब जि.2)Qabar ki Fazilat.
क़ब्रों को भुलाने के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का एक और इरशाद गिरामी है। तर्जुमा :- नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अनक़रीब मेरी उम्मत पर एक ऐसा ज़माना आयेगा जबकि मेरी उम्मत के लोग पाँच चीज़ों से मोहब्बत करेंगे और पाँच चीज़ों को भूल जायेंगे दुनिया को चाहेंगे जबकि आखिरत को भूल जायेंगे हयात को पसंद करेंगे और मौत को भूला देंगे महलों को पसंद करेंगे और क़ब्रों को भूल जायेंगे माल से मोहब्बत करेंगे और हिसाब को भूल जायेंगे ख़िलक़त को पसंद करेंगे और ख़ालिक़ को भूल जायेंगे।
क़ब्र को भूलाने से नेक आमाल की तरफ रग़बत कम होने का अन्देशा होता है इसलिये क़ब्र को भुलाना नहीं चाहिये क़ब्र को याद रखने से मौत का वक़्त इंसान के ज़ेहन में रहेगा जिसके बाअस उसके दिल में यह लगन बेदार रहेगी कि ज़्यादा से ज़्यादा नेक आमाल कर लूं जो उसकी नजात का बाअस बनेंगे।
क़ब्र से इंसान का तअल्लुक़ सच्चा है :-
क़ब्र में नजात का तअल्लुक़ नेक आमाल से है जब इंसान क़ब्र में दाखिल होता है तो अमल उसके साथ होता है और जब क़यामत में उठाया जायगा तो उस वक़्त भी अमल उसके साथ होगा इससे मालूम हुआ कि इंसान का सच्चा दोस्त उसका अमल है इसके बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की हदीस मुन्दरजा जैल है। इन्सान की दस (10) ख़सलतें।
हज़रत अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि इंसान के तीन दोस्त हैं उनमें से एक दोस्त कहता है जो तूने राहे खुदा में ख़र्च कर दिया वह तेरा है और जो तेरे क़ब्ज़े में है वह तेरा नहीं है यह इसका (दोस्त) माल है और एक उसका दोस्त उसे कहता है कि मैं तेरा साथ दूंगा मगर जब तू बादशाह के दरवाज़े पर जायगा यानी लेहद में उतरेगा तो मैं तेरा साथ छोड़ दूंगा यह इसके अईज़्ज़ा व अक़रबा हैं और तीसरा उसका दोस्त (उसका अमल है) जो उसे कहता है कि जब तू क़ब्र में दाखिल होगा और क़ब्र से उठेगा तो मैं तेरे हमराह हूँगा वह मैय्यत कहती है तू इन तीनों में मेरा सच्चा दोस्त है। (कन्जुलअम्माल)
क़ब्र के लिये तैयारी की ताकीद :-
क़ब्र की तैयारी के लिये हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का फरमान हस्ब जैल है।
हज़रत बराअ रजियल्लाहु अन्हो बयान फरमाते हैं कि एक मर्तबा हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की मईयत में एक जनाज़ा में शरीक थे (जब मैय्यत को लेहद में उतारा गया) आप सिर्रे क़ब्र बैठ गये और (यह मंजर देखकर) इस क़दर आबदिदा हुए कि क़ब्र के किनारे की मिटटी तर हो गई फिर इरशाद फरमाया कि ऐ मेरे भाईयों इस खतरनाक मुकाम के लिये कुछ तैयारी कर लो । (इब्ने माजा)Qabar ki Fazilat.
अब्दुल्लाह बिन ओबैद रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि जब मुर्दे के साथ आने वाले चलते हैं तो मुर्दा बैठकर उनके क़दमों की आवाज़ सुनता है और उससे इसकी क़ब्र से पहले कोई हम कलाम नहीं होता क़ब्र कहती कि इब्ने आदम क्या तूने मेरे हालात ना सुने थे क्या तू मेरी तंगी बदबू हौलनाकी और कीड़ों मकोड़ों से ना डराया गया था तो फिर तूने क्या तैयारी की।(इब्ने अबीअददुनिया)
क़ब्र को ना भुलाना असल ज़ोहद है :-
जो शख़्स रियाज़त व इबादत की कसरत करता है और हर वक़्त ज़िक्र इलाही में मसरूफ रहता है उसे आख़िरत का फिक्र दामनगीर रहता है जिसकी बिना पर क़ब्र उसे नहीं भूलती इसलिये सालेहीन के नज़दीक असल ज़ोहद क़ब्र को ना भुलाना है हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने भी अपने उम्मतियों को इस बात की बड़ी ताक़ीद फरमाई है कि क़ब्र को ना भूलो ताकि तुम नेकियों की तरफ रागिब रह सको।
हज़रत ज़हाक रजियल्लाहु अन्हो बयान करते हैं कि नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के पास एक शख़्स आया और सवाल किया कि ऐ अल्लाह के रसूल! लोगों में ज़ाहिद कौन है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो क़ब्र और क़ब्र में जिस्म के गल जाने को नहीं
भुलाता और दुनिया की बेजा ज़ेब व ज़ीनत से गुरेज करता है और फानी यानी दुनिया पर बाक़ी यानी आख़िरत को तरजीह देता है रोज़े फरदा को ज़िन्दगी में शुमार नहीं करता और अपने आप को मुर्दों में शुमार करता है। (तरगीब जि. 4)
हज़रत मोहम्मद बिन सबीह रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि जब मुर्दे को क़ब्र में रखा जाता है और उसको अज़ाब होता है तो उसके मुर्दे पड़ोसी उसको पुकार कर कहते हैं कि ऐ दुनिया से आने वाले क्या तूने हमसे नसीहत हासिल ना की क्या तूने ना देखा कि हमारे आमाल कैसे ख़त्म हुए और तुझे अमल करने की गुंजाईश थी लेकिन तूने वक़्त ज़ाया किया क़ब्र के गोशे से पुकार कर उसको कहते हैं कि ऐ ज़मीन पर इतरा कर चलने वाले क्या तूने मरने वालों से इबरत हासिल ना की क्या तूने ना देखा कि किस तरह तेरे रिशतेदारों को लोग उठा कर क़ब्रों तक ले गये (इब्ने अबीअददुनिया)Qabar ki Fazilat.
हज़रत ओबैद बिन ओमैर रजियल्लाहु अन्हो से रिवायत है कि क़ब्र मुर्दे से कहती है कि अगर तू अपनी ज़िन्दगी में अल्लाह तआला की अताअत करता तो आज मैं तेरे लिये राहत होती और अगर नाफरमान है तो मैं तेरे लिये अज़ाब हूँ मैं वह घर हूँ कि जो मुझ में अताअत गुज़ार होकर दाखिल हुआ तो मुझसे खुश होकर निकलेगा और जो नाफरमान व गुनहगार होगा वह मुझसे बुरी हालत में निकलेगा। (इब्ने अबीअदुनिया)
हज़रत जाबिर रजियल्लाहु अन्हु से मरफूअन रिवायत है कि क़ब्र की एक ज़बान है जिससे वह कहती है कि ऐ इंसान तूने मुझ को क्यों भुला दिया क्या तू मेरे बारे में ना जानता था कि मैं वहशत, गुरबत, कीड़ों मकोड़ों और तंगियों का घर हूँ। (इब्ने अबीअददुनिया)
क़ब्र को ना भुलाने का मक़सद दर हक़ीक़त कसरते इबादत की तरफ मायल रहना है क्योंकि इंसानी ज़िन्दगी का असल मक़सद तो अल्लाह तआला की इबादत और अताअत है चूंकि जो शख़्स इबादत करता है और नेकआमाल की कसरत करता है मौत के बाद अल्लाह तआला उसे सुख चैन की ज़िन्दगी अता फरमायेगा जो उसकी इबादत का सिला होगा और जो नेक आमाल नहीं करेगा उसे मौत के बाद सज़ा मिलेगी जो उसके बुरे आमाल के बिना पर होगी यह दोनों बातें मौत के बाद क़ब्र में पेश आएंगी इसलिये इस क़ब्र की बिना पर अल्लाह को याद रखने और उसकी इबादत की ताक़ीद फरमाई गई है ताकि क़ब्र में अंजाम बखैर हो। इस्लामी अख्लाक व तहज़ीब की फज़िलत।
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…