उलेमा ने लिखा है कि जब इनसान जिस्म से अपने लिबास को हटाये, अगर वह बिस्मिल्लाह पढ़ ले तो अल्लाह तआला उसके गिर्द एक हिफ़ाज़त का पर्दा डाल देते हैं।
शैतान उसको नहीं देख सकता, जिन्नात उसको नहीं देख सकते । इसलिये सुन्नत है कि इनसान कपड़े बदलना चाहे या नहाने के लिये कपड़े उतारना चाहे तो उसको चाहिये कि बिस्मिल्लाह पढ़ ले ताकि उसके गिर्द अल्लाह की तरफ से हिफ़ाज़त की चादर आ जाये ।दिल से तौबा का असर।
और शैतान और जिन्नात उसे देख न सकें। आजकल लोग सुन्नत का ख़्याल रखते नहीं और जिस्म से लिबास हटाते हैं। शैतान और जिन्नात उनको देखते हैं फिर कहते हैं कि जी बच्ची पर जिन्न का असर हो गया। फलाँ पर जिन्न का असर हो गया। शैतानी असरात हो गये।Bismillah ki Barkate.
हमने नबी की सुन्नत को छोड़कर खुद अपने लिये मुसीबतें ख़रीद ली हैं। इसलिये मियाँ बीवी को चाहिये कि जब इकट्ठा होने का इरादा करें तो अपने जिस्म से कपड़े अलग करने से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ लें।
ताकि उनको आपस में मिलते हुए कोई शैतान न देख सके। कोई जिन्न न देख सके। और शरीअत ने यह भी नुक्ता बता दिया और यह भी फरमा दिया कि दोनों को किब्ला-रू नहीं होना चाहिये।
यानी ख़ास हालत में किब्ले की तरफ रुख नहीं करना चाहिए बल्कि शरीअत ने यह बात कही कि अगर जिस्म से अपना लिबास हटायें तो एक बड़ी चादर हो। जिसके अन्दर दोनों एक दूसरे से मिलें। उस बड़ी चादर की वजह से अल्लाह तआला उनकी होने वाली औलाद में हया ( शर्म) पैदा फ़रमायेंगे ।
लिहाज़ा उलेमा ने इस बात की किताबों में तस्दीक़ की कि जिन मियाँ बीवी ने अपने ऊपर बड़ी चादर लेने का एहतिमाम किया तो अल्लाह तआला ने फितरी तौर पर उनकी औलाद को शर्मीला बनाया। हया वाला बनाया।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की तरफ से ये मामलात होते हैं। देखिये शरीअत ने हमें कैसी-कैसी बारीक बातों के बारे में बता दिया।Bismillah ki Barkate.
बुखारी शरीफ में हमबिस्तरी यानी मियाँ- बेवी के ख़ास काम के लिये मिलाप के वक़्त की यह दुआ भी बयान की गयी है कि मर्द को चाहिये कि दुआ पढ़ ले,और जब मर्द को इन्जाल हो तो किताब ‘हिस्ने हसीन’ के अन्दर यह दुआ पढ़ना बयान किया गया है।हमबिस्तरी करने से पहले ख़ुशबू का इस्तेमाल।
अल्लाहुम्-म ला तज्अल् लिश्शैतानि फीमा रज़क्तनी नसीबन् इन दुआओं को याद कर लेना चाहिये । चुनाँचे मियाँ- बीवी दोनों मिलाप कर चुकें तो उसके बाद उनको चाहिये कि तहारत (पाकी हासिल करने) के अन्दर जल्दी करें। जल्दी की आख़िरी हद यह है कि उनकी नमाज़ क़ज़ा न हो ।
उलेमा ने किताबों में लिखा है कि अगर मियाँ बीवी के मिलाप से औलाद का नुत्फा ठहर गया मगर मियाँ या बीवी की अगली. नमाज़ क़ज़ा हो गई तो उनकी औलाद फासिक (बुरे काम करने वाली) बनेगी। लिहाज़ा यह एक ऐसा मामला है जिसमें मर्दों और औरतों दोनों की तरफ से कोताही होती है ।Bismillah ki Barkate.
फिर अगली नमाज़ अगर फज्र की है तो कज़ा हो गई या कोई और नमाज़ क़ज़ा हो गई, औरतें गुस्ल की एहतियात ज़रा देर से करती हैं और उसी में नमाज़ क़ज़ा कर बैठती हैं।
एक नुक्ते की बात याद रखना। जब भी मियाँ बीवी के मिलाप की वजह से उनकी अगली नमाज़ कज़ा हुई और उस मिलाप की वजह से उनको औलाद हो गई तो उस औलाद के अन्दर फ़िस्क़ व फुजूर ( गुनाह करने का माद्दा) आ जायेगा।सुहागरात के चन्द आदाब ,एक बहोत बड़ी गलत फहमी।
जब माँ ने ही इस अमल की वजह से अल्लाह के हुक्म हो तोड़ दिया तो फिर फल भी तो ऐसा ही मिलना है। इसलिये इस बात का बड़ा ख़्याल रखें।Bismillah ki Barkate.
बिस्मिल्लाह की बरकतें अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…