सोहबत (हमबिस्तरी) से पहले खुशबू लगाना बेहतर है। खुशबू सरकारे मदीना सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम को बहुत पसंद थी ।
आप (स.व)हमेशा ख़ुशबू का इस्तेमाल किया करते थे ताकि हम गुलाम भी सुन्नत पर अमल करने की नियत से खुशबू लगाया करें। वरना इस बात से किसी को शक व शुबा नहीं कि आप (स.व)का वजूदे मुबारक खुद ही महकता रहता और आप का मुबारक पसीना खुद काएनात की सब से बेहतरीन खुशबू है ।
सोहबत से पहले भी खुशबू का इस्तेमाल करना अच्छा है। खुशबू से दिल व दिमाग को सुकून मिलता है और सोहबत करने में दिलचस्पी बढ़ती है।Hambistari karne se pahle Khushbu ka istemal.
हज़रत इमाम काज़ी अय्याज मालकी ऊन्दलेसी रजिअल्लाहु तआला अन्हो, अपनी मशहूर किताब “शिफा शरीफ” में इरशाद फरमाते है—“हुजूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम को खुशबू बहुत ज्यादा पसंद थी । रहा आप (स.व)का खुशबू इस्तेमाल करना तो वोह इस वजह से था कि आप की बारगाह में मलाएका (फरीश्ते ) हाज़िर होते थे !
और दूसरी वजह यह है कि खुशबू सोहबत करने में दिलचस्पी को बढ़ाती है, सोहबत में मद्दगार होती है और मर्द की कुव्वत में इजाफा करती है। लेकिन हुज़ूर (स.व)का खुशबू इस्तेमाल करना अपनी जात के लिए न था बल्कि शहवत का जोर कम करने के लिए था वरना हकीकी मुहब्बत तो आप को जाते बारी तआला यानी अल्लाह तआला के साथ ख़ास थी” । (शिफा शरीफ, जिल्द 1 नं. 154)
लेकिन यह याद रहे कि सिर्फ इतर का ही इस्तेमाल करे बद किस्मती से आज कल ख़ालिस इतर का मिलना दुशवार हो गाया है अब ऊमुमन जो इतर बाज़ारों में मिलते है उन में कैमिकल्स (Chemicals) होते है उन का लिबास में इस्तेमाल करना जाइज़ है।Hambistari karne se pahle Khushbu ka istemal.
लेकिन सर और दाढ़ी के बालों में लगाना नुकसानदेह हैं । सैन्ट में इस्पिरिट (Alkohal) की मिलावट होती है जो शराब के हुक्म में है। यानी शराब है और शराब हराम है ।
आला हज़रत रजि अल्लाहो अन्हो इरशाद फरमाते हैं-“ अलकोहल (शराब) वाले इतर (यानी सैन्ट) का इस्तेमाल गुनाह है बल्कि एैसे इतर (सैन्ट) की खुशबू सूंगना भी ना जाइज़ है” । (फतावा-ए-रज़वीया, जिल्द 10 सफा 88 )
इस लिए सिर्फ एैसे इतर का इस्तेमाल करे जिसमें इस्पिरिट ( अलकोहल ) न हो । अलकोहल वाले इतर या सैन्ट की पहचान येह है कि उसे अगर हथेली पर लगाया जाए तो ठन्ड़क महसूस होगी और फौरन उड़ भी जाऐगा । इस्लाम में औरत और पर्दे का हुक्म।
औरतें ऐसे इतर का इस्तेमाल करे जिस की खुशबू हल्की हो ऐसी न हो जिस की खुशबू उड़ कर गैर मर्दों तक पहुँच जाए ।
हदीस :- हज़रत अबू मूसा अशअरी रजि अल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया–“जब कोई औरत खुशबू लगा कर लोगों में निकलती है तो वोह औरत जानिया यानी बलत्कार करवाने वाली पेशावर) है” ।( दाऊद शरीफ, जिल्द 3 सफा 264)Hambistari karne se pahle Khushbu ka istemal.
सोहबत खड़े खड़े न करे :-
सोहबत खड़े खड़े न करे क्योंकि यह जानवरों का तरीका है। और न ही बैठे बैठे करें क्योंकि इससे मर्द औरत दोनों के लिए नुकसान है। इस तरीके से सोहबत करने से बदन और ऊज़ू-ए-तनासुल (मर्द का सेक्स पार्ट) जड़ से कमज़ार हो जाता है और औलाद कमजोर,
अपंग पैर से अपाहिज पैदा होती है। बाज़ ओलमा-ए-दीन ने फरमाया कि औलाद बददिमाग और बेवकूफ होती है । हकीमों ने कहा है कि खड़े हो कर सोहबत करने से राशा (बदन हिलने) की बीमारी हो जाती है। (अल्लाह की पनाह )
सोहबत करने का सही तरीका यह है कि बिस्तर पर लेटे लेटे करे और औरत नीचे हो मर्द उपर हो जैसा की कुरआने पाक की इस आयते करीमा में भी इशारा किया गया है- तर्जमा :- फिर जब मर्द उसपर छाया उसे एक हल्का सा पेट रह गया ।(तर्जमा :- कन्जुल इंमान, पारा 9 सूरए, अराफ, रूकू 14 आयत 189)
इस आयते करीमा से हमें सबक मिलता है कि सोहबत के वक्त औरत चित लेटे और मर्द उस पर पट (उल्टा) लेटे कि इस तरह से मर्द के जिस्म से औरत का जिस्म ढक जाऐगा। और देखा जाए तो इस तरीक़े में ज्यादा आसानी है और मर्द की मनी आसानी से निकल कर औरत की शर्मगाह (योनी) में दाखिल होती है । और हमल जल्द करार पाता है ।
किबले की तरफ रुख न हो :-
हुजूर सैय्यदना इमाम मुहम्मद गज़ाली रजिअल्लाह तआला अन्हो फ़रमाते हैं-“सोहबत करने के आदाब में से एक अदब येह भी है कि सोहबत के वक़्त मुँह किबले की तरफ से फेर लें” । (कीम्या-ए-सआदत, सफा नं. 266)Hambistari karne se pahle Khushbu ka istemal.
आला हज़रत रजि अल्लाह तआला अन्हो फरमाते है- “सोहबत के वक्त किबले की तरफ मुँह या पीठ करना मकरूह व ख़िलाफ़े अदब है जैसा की “दुर्रे मुख्तार” में बयान हुआ” सोहबत के वक्त किबले की तरफ से मुँह फेरने के लिए शायद इस लिए कहा गया, क्योंकि किबले की तअज़ीम हर मुसलमान पर ज़रूरी है उस की तरफ रूख कर के बन्दा अपने रब की ईबादत करता है और किबले की तरफ थूकने, पेशाब पख़ाना करने और बरहेना (नंगा) उस की तरफ रूख़ करने की सख्त मुमानियत आई है ।
हदीस :- एक हदीसे पाक में है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया-“जब बन्दा नमाज़ पढ़ता है तो उस का परवरदिगार उस के और किबले के दरमियान होता है । (यानी किबले की जानिब अल्लाह तआला की रहमत ज्यादा मुतवज्जहे होती है) ( बुख़ारी शरीफ, जल्द 1 बाब नं. 274, हदीस नं. 393, सफा नं. 233)Hambistari karne se pahle Khushbu ka istemal.
अब चूँकि सोहबत के वक्त मर्द और औरत बरहेना (नंगी) हालत में होते है तो इस हालत में भला किबले की तरफ रूख कैसे किया जा सकता है ।
बरहेना (नंगी हालत) में सोहबत करना :-
सोहबत के दौरान मर्द और औरत कोई चादर वगैरा ओढले जानवरों की तरह बरहेना (नंगे रह कर ) सोहबत न करे । हदीस हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम इरशाद फरमाते है- “जब तुम में कोई अपनी बीवी से सोहबत करे तो पर्दा कर ले, बेपर्दा होगा तो फरिश्ते हया की वजह से बाहर निकल जाएगे और शैतान आ जाएगे, अब अगर कोई बच्चा हुआ तो शैतान की उस में शिर्कत होंगी ।
इमाम अहले सुन्नत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ रजिअल्लाहो अन्हो ने अपनी किताब “फतावा-ए-रज़वीया” में फ़रमाते है— ” सोहबत के वक्त अगर कपड़ा ओढ़े है बदन छुपा हुआ है तो कुछ हर्ज नहीं और अगर बरहेना (नंगी हालत में) है तो, एक तो बरहेना सोहबत करना खूद मकरूह है हदीस में है रमूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने सोहबत के वक्त मर्द व औरत को कपड़ा ओढ़ लेने को हुक्म दिया और फ़रमाया, यानी गधे की तरह नंगे न हो” । (फतावा-ए-रजवीया, जिल्द 9 सफा 140 ) इस्लामी अख्लाक व तहज़ीब की फज़िलत।
आला हज़रत रदी अल्लाहो तआला अन्हो एक दूसरी जगह इरशाद फरमाते है-“बरहेना (नंगी हालत में) रह कर सोहबत करने से औलाद के बे शर्म व बेहया होने का ख़तरा है” ।
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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…