शाह अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि का एक शार्गिद था। उसको एक बार किसी औरत ने बहाने से घर में बुलवाया कि एक घर में मरीज़ है उसको कुछ पढ़कर दम कर दीजिए। वह सीधा आदमी था बेचारा जब घर में गया तो दरवाज़े बन्द। तब उसको पता चला कि उस औरत की तो नीयत ठीक नहीं।
अब कैसे गुनाह से बचे। उसने फौरन बहाना किया कि मुझे लैट्रीन में जाने की ज़रूरत है। चुनाँचे वह लैट्रीन में चला गया। वहाँ जाकर जो गन्दगी पड़ी हुई थी उसने वह गन्दगी अपने जिस्म पर मल ली। जब बाहर निकला तो उसके जिस्म से बदबू के भभूके आ रहे थे। जब वह उस औरत के करीब आया तो इतनी बदबू आ रही थी। उसने कहा मुझे क्या पता कि तुम इतने कमीने और इतने बेवकूफ इनसान हो, दफा हो जाओ यहाँ से।
चुनाँचे उसने दरवाज़ा खोला और अपना ईमान बचाकर निकल आया। अब रो रहा था कि रास्ते में लोगों को बदबू आयेगी तो मैं क्या जवाब दूँगा। सीधा मदरसे में पहुँचा वहाँ जाकर गुस्लखाने में कपड़े भी पाक किये, धोये, गुस्ल भी किया और गीले कपड़े पहनकर हज़रत के दर्स के अन्दर आकर पीछे बैट गया।
यह कभी लेट नहीं आया था, उस दिन लेट हो गया। थोड़ी देर के बाद हज़रत ने दर्स देने के दौरान रुककर पूछाः अरे तुममें से आज इतनी तेज़ खुशबू लगाकर कौन आया है? लड़कों ने जब इधर-उधर देखा। एक लड़के ने बताया कि अभी देर से यह जो नया लड़का अया है इसने खुशबू लगायी हुई है।
हज़रत ने करीब बुलाया। फरमाया कि तुमने इतनी तेज़ खुशबू क्यों लगाई? जब बार-बार पूछा तो बताना पड़ा। उसकी आँखों में आँसू आ गये। उसने वाक़िआ सुनाया। कहने लगा हज़रत ! मैंने तो अपने दामन को बचाने के लिए इज़्ज़त को बचाने के लिए अपने जिस्म पर गन्दगी को लगाया था, लेकिन अब मैं नहा भी चुका धो भी चुका जहाँ-जहाँ गन्दगी लगाई थी। मेरे जिस्म के उन-उन हिस्सों से खुशबू आ रही है।
खूबसूरत वाक़िआ: जन्नत के वो नेमतें
चुनाँचे जब तक यह नौजवान ज़िन्दा रहा उसके जिस्म से मुश्क की खुशबू आती रही।
किताबों में लिखा है कि इसी वजह से उसका नाम ख़्वाजा मुश्की पड़ गया था। लोग उन्हें ख़्वाजा मुश्की कहते थे। कि जहाँ-जहाँ उन्होंने गुनाह से बचने के लिए गन्दगी लगायी थी, उनके जिस्म के उन-उन हिस्सों से खुशबू आया करती थी।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
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