नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि ने फरमायाः ऐ मौत के फरिश्ते ! तुम आने से पहले कोई संदेश (Message) ही भेज दिया करो जैसे लोग कहते हैं कि अपने दोस्त को आने से पहले कोई ई-मेल कर देनी थी।
तो नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया आने से पहले पैग़ाम भेज दिया करो ताकि लोग तैयार हो जायें। मलकुल्-मौत ने कहा ऐ अल्लाह के महबूब ! मैं पैग़ाम तो बहुत भेजता हूँ लोग तवज्जोह नहीं देते।
मिसाल के तौर पर किसी आदमी की बीनाई यानी आखों की रोशनी क़ा कम हो जाना यह एक पैग़ाम है कि मौत करीब है, दाँत के अन्दर कीड़े का लग जाना इस बात की अलामत है कि ज़िन्दगी खूब गुज़ार चुके। खा-खाकर दाँतों में कीड़े पड़ चुके, अब मौत का वक़्त करीब है।
किसी इनसान के बालों का सफेद हो जाना, यह भी मौत का पैग़ाम (Message) है। किसी की समाअत यानी सुनने की ताक़त का कम हो जाना यह भी मौत का पैग़ाम है। किसी को शूगर, ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारी, लम्बी बीमारियों का हो जाना यह मौत के करीब होने का पैग़ाम है।
लेकिन हम इस पैग़ाम को संजीदगी से लेते ही नहीं। कान ही नहीं धरते, अपनी मस्तियों में लगे होते हैं।
इसलिए जब मौत का फरिश्ता आता है तो हम तैयार नहीं होते। हमें चाहिए कि हम उसकी तैयारी कर लें ताकि हम मौत से पहले मौत के लिए तैयार हों। जिस इनसान ने आख़िरत की तैयारी कर ली वह इनसान खुशनसीब इनसान है।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
खूबसूरत वाक़िआ:-फोन पर बातें करना |
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
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