हर मुकल्लफ़ यानी आक़िल बालिग पर नमाज़ फ़र्ज़ ऐन है इसकी फ़ज़ियत का मुन्किर काफ़िर है और जो क़स्दन छोड़े अगरचेह एक ही वक़्त की वह फ़ासिक़ है, और जो न पढ़ता हो वह क़ैद किया जाए,

इमामे शाफ़ई और इमाम अहमद बिन हंबल रज़ियल्लाहो अन्हुम के नज़दीक बादशाहे इस्लाम को उसको (बेनमाज़ी) क़त्ल का हुक्म है।

बच्चे की उम्र जब सात बरस की हो जाए तो उसे नमाज़ पढ़ना सिखाया जाए, और जब दस बरस का हो जाए तो मारकर पढ़वाना चाहिये। (अबू दाऊद, तिर्मिज़ी)

नमाज़ खालिस बदनी इबादत है, इसमें नयाबत जारी नहीं हो सकती यानी एक की तरफ़ से दूसरा नहीं पढ़ सकता न यह हो सकता है कि जिन्दगी में नमाज के बदले कुछ माल बतौरे फ़िदया अदा करे,

अलबत्ता अगर किसी पर कुछ नमाजें रह गई हैं और इन्तिकाल कर गया और वसिय्यत कर गया कि उसकी नमाज़ों का फ़िदया अदा किया जाए तो उम्मीद है कि इंशाअल्लाह तआला कुबूल होगा,

नमाज़ छोड़ने वाले और उनको क़ज़ा करने वालों के लिये सख़्त और शदीद सज़ाएँ की गई हैं,