मेहमान के आने पर खुशी और मुहब्बत जाहिर कीजिए और बड़ी खुशदिली, खुले मन और इज्ज़त के साथ उसका इस्तेकबाल कीजिए ।
हमारे नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है- "जो लोग ख़ुदा और आखिरत के दिन पर यक़ीन रखते हैं उन्हें अपने मेहमान का इज़्ज़त करना चाहिए।" (बुखारी, मुस्लिम)
हमारे नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास जब मेहमान आते तो आप खुद ही उनकी खातिरदारी फ़रमाते ।
जब आप मेहमान को अपने दस्तरखान पर खाना खिलाते तो बार-बार फ़रमाते, "और खाइए, और खाइए।" जब मेहमान का दिल भर जाता और इनकार करता तब आप इसरार करने से रुक जाते ।
मेहमान की इज़्ज़त व आबरू का भी ख्याल रखिए और उसकी इज़्ज़त व आबरू को अपनी इज़्ज़त व आबरू समझिए। आपके मेहमान की इज्ज़त पर कोई हमला करे तो उसको अपनी गैरत के ख़िलाफ़ चुनौती समझिए ।
कुरआन में है कि जब लूत अलैहिस्सलाम के मेहमानों पर बस्ती के लोग बदनियती के साथ हमलावर हुए तो वे रोकने के लिए उठ खड़े हुए और कहा कि ये लोग मेरे मेहमान हैं।