एक हदीस में है के सूरे बकरा की आखरी दो आयतें 'आमनर्रसूल' से आखिर तक जिस घर में पढ़ी जाएं तीन दिन तक शैतान उस घर के करीब नहीं आता। (हसन हुसैन)

हज़रत उस्मान गनी रजियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं की जो शख़्स सूरे आले इमरान की आखरी ग्यारह आयतें 'इन्न फी खलकिस्समावाति' से आखिर तक किसी रात पढ़ ले तो उसे रात भर नमाज़ पढने का सवाब मिलेगा। (मोतबर)

एक रिवायत में है की जो शख़्स सूरे यासीन को सिर्फ अल्लाह की रज़ा के वास्ते पढ़ें उस के पहले सब गुनाह मआफ हो जाते हैं। (फज़ाइले कुरआन)

एक हदीस में है की सूरे तबारकल्लज़ी का हर रात को पढ़ते रहना अज़ाबे कब्र से निजात का सबब है और अज़ाबे जहन्नम से भी। (फज़ाइले आमाल)

सूरे मुज़म्मिल का एक मर्तबा रोज़ाना इशा की नमाज़ के बाद पढ़ना फाके से बफज़ले तआला महफूज़ रखता है। (तिब्बे रुहानी)

सूरे अन्नबा का असर की नमाज़ के बाद पढ़ना दिन में यकीन और नूरे इमान पैदा करता है और इन्शा अल्लाह खातमा बिलखैर होने का सबब होता है। (मोतबर)