जिमाअ करना इन्सान की वह तबई और अहम ज़रूरत है जिसके बगैर इन्सान का सही तौर से ज़िन्दगी गुज़ारना मुश्किल बल्कि तकरीबन ना मुम्किन सा है।
अल्लाह तआला ने जिमाअ की ख़्वाहिश इन्सानों ही में नहीं बल्कि तमाम हैवानात में वदीअत रखी है लेकिन शरीअत ने इन्सान की इस फितरी ख्वाहिश की तक्मील के लिये कुछ आदाब और तरीके मुकर्रर कर दिये ताकि इन्सान और हैवान में फ़र्क हो जाए।
(1) जिमाअ से पहले औरत से मुलाअबत और छेड़-छाड़ करे ताकि औरत का दिल खुश हो जाय और उसकी मुराद आसानी से हासिल हो।
जिमाअ के कुछ आदाब बयान करते है :-
(2) मर्द को चाहिये कि अपनी औरत पर जानवरों की तरह न गिरे। सोहबत से पहले कासिद होता है। लोगों ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! वह कासिद क्या है?
(3) जिमाअ करते वक़्त कलाम करना मकरूह है बल्कि बच्चे के गूंगे या तोतले होने का ख़तरा है। यूं ही उस वक़्त औरत की शर्मगाह पर नज़र न करे कि बच्चे के अन्धे होने का अन्देशा है और मर्द औरत कपड़ा ओढ़ लें,
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "बोसो किनार।"(कोमिया ए सआदत पेज 266)
"तो अब उनसे सोहबत करो और तलब करो जो अल्लाह ने तुम्हारे नसीब में लिखा हो।" (सुरए बक़रा)
कुरान :- अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:
हदीस :- नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः "तुम में से जो कोई अपनी बीवी के पास जाए तो पर्दा करे और गधों की तरह बरहना यानी नंगा न हो जाए।" (इब्ने माजा पेज 138)
जिमाअ करते वक़्त कलाम करना मकरूह है बल्कि बच्चे के गूंगे या तोतले होने का ख़तरा है।