जो अपने शौहर की फरमांबरदारी और खिदमत गुज़ारी को अपना फर्ज़ मनसबी समझे।

जो अपने शौहर के तमाम हुकूक अदा करने में कोताही न करे।

जो अपने शौहर की खूबियों पर नज़र रखे और उसके उयूब और खामियों को नज़र अन्दाज़ करती रहे।

जो अपने शौहर के सिवा किसी अजनबी मर्द पर निगाह न डाले न किसी की निगाह अपने ऊपर पड़ने दे।

जो अपने शौहर की ज्यादती और जुल्म पर हमेशा सब्र करती रहे।

जो मज़हब की पाबन्द और दीनदार हो और अल्लाह व बन्दों के हुकूक को अदा करती हो।