याद रखें! इस्लाम खुशी मनाने का हुक्म देता है मगर वह खुशी जिसमें शरीअते मुतहहरा के एहकाम के खिलाफ वरज़ी की जाए इस्लाम इसकी हरगिज़ इजाज़त नहीं देता।

सदका-ए-फित्र शख्स पर वाजिब है, माल पर नहीं, लिहाजा अगर कोई शख्स मर गया तो उसके माल से सदका-ए-फित्र वाजिब नहीं।

लोगों ने अर्ज़ किया, जाहिलियत में हम इन दिनों में खुशी मनाते थे। फरमाया, अल्लाह तआला ने उनके बदले में उनसे बेहतर दो दिन तुम्हें दिए, ईदुल अज़्हा और इंदुल फित्र।

वह इस मुबारक दिन बाकसरत अल्लाह की इबादत करते थे, गरीबों की ग़मख्वारी करते, यतीमों, बेवाओं का सहारा बनते वगैरा वगैरा।

यूँ तो दीने इस्लाम ने हर लम्हा गरीब परवरी, मुफलिसों की मदद और यतीमों और मिस्कीनों की फ़रियाद रसी का दर्स दिया है, खुसूसन ईद के दिन इन्हें नहीं भूलना चाहिए।

इसी लिए बानी-ए- इस्लाम ने ईद की नमाज़ अदा करने से पहले सदक्-ए-फित्र अदा करने का हुक्म फरमाया ताकि मुसलमान इस खुशी के मोके पर अपने गरीब भाइयों को भी याद रखें और अपनी खुशी में उन्हें भी शरीक कर लें।